बहुत देर से खामोशी से बह रहा था दरिया
मेरे पानी में उतरते ही उफ़ना गया दरिया
सख्त जान समझता रहा उम्र भर जिसको
रात उसी पत्थर के सीने से खूब बहा दरिया
जो पूछा तुम भी इठला के क्यूँ नही बहते हो
सुना चुप रहा हौले से मुस्कुरा दिया दरिया
ईश्क़ की नाव पे बैठ बाँहों के चप्पू चला दिए
फिर तो मेरे साथ खुश खुश खूब बहा दरिया
देर औ दूर तक बहते बहते थक गया दरिया
मै बन गया समंदर मुझमे समा गया दरिया
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरे पानी में उतरते ही उफ़ना गया दरिया
सख्त जान समझता रहा उम्र भर जिसको
रात उसी पत्थर के सीने से खूब बहा दरिया
जो पूछा तुम भी इठला के क्यूँ नही बहते हो
सुना चुप रहा हौले से मुस्कुरा दिया दरिया
ईश्क़ की नाव पे बैठ बाँहों के चप्पू चला दिए
फिर तो मेरे साथ खुश खुश खूब बहा दरिया
देर औ दूर तक बहते बहते थक गया दरिया
मै बन गया समंदर मुझमे समा गया दरिया
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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