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Tuesday, 31 May 2016

मैं बन जाना चाहता हूँ सब कुछ

मैं
बन जाना
चाहता हूँ
एक खूब
खूब बड़ा सा
आसमान
सच्ची - मुच्ची का
जिसमे तुम उड़ो
अपने पंख पसार के
ऊपर और खूब ऊपर
जितनी ऊपर तुम जा सको
और मैं तुम्हे देखूं
उड़ता हुआ
चुप चाप
और निस्पन्द

यहाँ तक कि
कई बार मैंने
चाहा बन जाऊँ बादल
और तुम बन जाओ धरती
फिर मैं बरसूँ
झम -झमा झम
और बरस कर
हो जाऊं खाली
और,,
खो जाऊं
आसमान में
फिर - फिर से भर लाने को
प्रेम रस तुम पर
बरसाने को

या फिर
मैं बन जाऊं एक मुंडेर
जिसपे तुम चहको
बुलबुल सा
या फिर मैं बन जाऊँ
इक बड़ा सा पेड़
जिसकी डाली पे
तुम बनाओ अपना घोसला
बया सा

सच मैं बन जाना चाहता हूँ
सब कुछ
बहुत कुछ
और कुछ भी
तुम्हारे लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए


मुकेश इलाहाबादी --------

Monday, 30 May 2016

इतने दिनों बाद मिले हो !

इतने
दिनों बाद
मिले हो ! 
हंस रहे हो 
चहक रहे हो 
अच्छा लगा 

और हाँ ,,,,
मैंने भी 
बेहद  
उदास दिन 
और 
तमाम
स्याह रातें 
काट डाली 
तुम्हारे बिन, 

तुमने 
यह भी नहीं पुछा 
'तुम कैसे हो ???"
'तुम कैसे रहे मेरे बिन ???'
खैर, कोई बात नहीं 
तुम तो अच्छी हो न ?
सुमी !!

मुकेश इलाहाबादी ------- 

Saturday, 28 May 2016

बादलों का जिस्म ले बरस जाऊं

बादलों का जिस्म ले बरस जाऊं
बन  हवा  का झोंका लिपट जाऊँ
झील  सी  गहरी  नीली आँखों में
अश्के  महताब सा  उतर  जाऊँ
मुकेश इलाहाबादी ---------------

में, समेट लूँ पूरा का पूरा 'चाँद

मैं,
अपनी हथेलियों
में, समेट लूँ
पूरा का पूरा 'चाँद'
तुम,
रख दो गुलाब की
दो पंखुड़ियाँ
मेरे जलते हुए
माथे पे

और फिर,
क़यामत आ जाये

मुकेश इलाहाबादी --------
  

Thursday, 26 May 2016

पहले तो मुहब्ब्त करना सिखाया जाता है

पहले तो मुहब्ब्त करना सिखाया जाता है
फिर ईश्क़ जादों को पत्थर मारा जाता है
स्कूल में कहा जाता है सदा सच बोलो औ
सड़क पे झूठ का परचम लहराया जाता है
है जो सबसे बड़ा पापी झूठा और मक्कार
उसी को जहाँ का मसीहा बताया जाता है
पैगंबरों को ज़हर देंगे, और सूली चढ़ाएंगे
फिर उन्हें ही सदियों सदियों पूजा जाएगा

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

जब -जब तुम्हारे पास आता हूँ मैं

जब -जब तुम्हारे पास आता हूँ मैं
अहसासे खुशबू से भर जाता हूँ मैं
तुमको शहर छोड़े मुद्दत हुई मग़र  
तेरे दर से हर रोज़ गुज़रता हूँ  मैं
मुकेश इलाहाबादी ----------------

हवा है, फूल है, खुशबू है

हवा है, फूल है, खुशबू है
बज़्म में सिर्फ तू ही तू है
सब कुछ  पा लिया मैंने
सिर्फ तेरी ही जुस्तज़ू है
अपनी खामोशी के बीच
हवाओं  की  गुफ्तगू  है

मुकेश इलाहाबादी -----

Wednesday, 25 May 2016

न तुम बेज़ुबाँ थे

न तुम
बेज़ुबाँ थे
न हम
बेज़ुबाँ थे
ये और बात
फक्त, इक अलफ़ाज़
न तुमसे
कहा गया
न हमसे
कहा गया

मुकेश इलाहाबादी ------

Tuesday, 24 May 2016

अकेला तू भी नहीं चल रहा होता

अकेला तू भी नहीं चल रहा होता
मेरा भी काफिला न अकेला होता
अग़र तू ज़रा भी इशारा कर देता
न तू तन्हा होता न मैं तन्हा होता
हमारे दरम्याँ रेत् का सहरा नहीं
दरिया- ऍ -मुहब्ब्त बह रहा होता
तेरे बस एक ही इशारे में, मुकेश
फ़लक़ से सितारे तोड़ लाया होता
मुकेश इलाहाबादी ---------------

Monday, 23 May 2016

सपने में

यूँ तो
दुनियावी झमेले
मुझे सोने नहीं देते
फिर कुछ ये, सोचकर
सो जाता हूँ ,
कि सपने में
तुम आओगी !

सुमी से ---

मुकेश इलाहाबादी --

बियाबाँयह जंगल है खो जाओगे

बियाबाँयह  जंगल है खो जाओगे
मुझसे मिलोगे तो मेरे हो जाओगे
मेरी कहानी क्या करोगे सुनकर?
बेवजह तुम भी दुखी हो जाओगे !
मुकेश इलाहाबादी ---------------

Saturday, 21 May 2016

मैंने शहर छोड़ा वो लिपट के रोया नहीं
उसने ज़ुबाँ सिल ली थी कुछ बोला नहीं
मैं भी तो कहाँ जाना चाहता था छोड़ के
मैं ज़िद्दन रुका नहीं उसने भी रोका नहीं

मुकेश इलाहाबादी ----------

ज़रा सी बारिश होगी घुल जाएंगे

ज़रा सी बारिश होगी घुल जाएंगे
मिट्टी के खिलौने हैं गल जाएंगे

बहुत फिसलन है राहे जवानी  में
हाथ थाम लो तो, सम्हल जाएंगे

मैं सूरज हूँ मुझसे मत लिपट तू
ये तेरे मोम के पर हैं जल जाएँगे

अभी तो दिन है अभी तो घर पे हूँ  
सांझ, आवारगी पे निकल जाएँगे

अभी तो नयी - नयी मुलाकात है
धीरे धीरे हम भी घुलमिल जाएंगे

मुकेश इलाहाबादी -----------------

हवाओं का रुख पहचाना करो

हवाओं का रुख पहचाना करो
फिर नाव के पाल बांधा करो

ये मोम का जिस्म लेकर तुम
सूरज के शहर न  जाया करो

जो तुम्हारा  दर्द  न बाँट सके
उसको दुखड़ा न सुनाया करो

मिट्टी में मिल जाएगा बदन
इस जिस्म पे न इतराया करो

गर तुम्हे हमसे मुहब्ब्त नहीं
देख कर यूँ न मुस्कुराया करो


मुकेश इलाहाबादी -----------

Friday, 20 May 2016

तुम अपना आसमानी आँचल लहरा दो

तुम अपना आसमानी आँचल लहरा दो
मैं परिंदा हूँ बहुत दूर तक उड़ सकता हूँ
ये और बात मुझे बुतपरश्ती पसंद नहीं
मगर तेरे लिए मैं, ये भी कर सकता हूँ

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

ये और बात दूर दूर हो के चलता है

ये और बात दूर दूर हो के चलता है
चाँद मेरे साथ साथ सफर करता है

शायद सूरज का भी कोई चाँद होगा
तभी वो भी तो मेरी तरह जलता है

बर्फ का हिमालय है ये ज़िगर मेरा
यहाँ  दरिया -ऐ-ईश्क़ बहा करता है

शर्मो हया उसे कुछ कहने नही देती
लिहाज़ा वो निगाहों से बात करता है

चिल्लाने से भी यहाँ कुछ नहीं होगा
बहरों का शहर है मुकेश चुप रहता है  

मुकेश इलाहाबादी ------------------

तकल्लुफ और तमीज़दार महफ़िलों में अच्छा नहीं लगता

तकल्लुफ और तमीज़दार महफ़िलों में अच्छा नहीं लगता
महफिलों में रौनक रहे कोई तो इक दोस्त कमीना चाइये
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------------

सारी दुनिया को तू हैरान कर गया

सारी दुनिया को तू हैरान कर गया
तू अभी अभी बेनक़ाब गुज़र गया

गीले गेसू सुखाती छज्जे पर तू है
देख ! शहर का कारवाँ ठहर गया

मुकेश इलाहाबादी ------------------

तुमसे मिले तो खिलखिलाता है

तुमसे मिले तो खिलखिलाता है
वरना सारा दिन उदास रहता है

दिनभर टुकड़ा टुकड़ा जोड़ता हूँ
वही सांझ होते दिल टूट जाता है

मुकेश इलाहाबादी ---------------

Thursday, 19 May 2016

दूधिया हँसी के उजाले में

जब,
उस दिन
छत पे
खड़ी हो के
तुम, हँस -हँस के
बतिया रही थी
मोबाइल पे किसी से
उसी वक़्त मैंने
चुपके से,
अपनी अंजुरी में
लोक ली थी
तुम्हारी खनखनाती हँसी
जो अब
चमकती है
रात के अँधेरे में
जुगनू सा
और मैं खो जाता हूँ ,
तुम्हारी दूधिया हँसी के उजाले में

(सुमी - सच तुम बहुत अच्छा हंसती हो - मेरी प्यारी सुमी _

मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------

Wednesday, 18 May 2016

ईश्क़ के फ़लक पे तुझको ऊंची उड़ान दूँ

ईश्क़ के फ़लक पे तुझको  ऊंची  उड़ान दूँ
हया के फलक से निकल तो आसमान दूँ
झील दरिया समंदर सब तो तेरी आँखो में
कहाँ जा के डूबूं कहाँ जा के अपनी जान दूँ

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

जिसकी याद में मैंने रतजगा किया

जिसकी याद में मैंने रतजगा किया
वो, जालिम आराम से सोया किया
मुकेश जिसके लिए मैं रुसवा हुआ
उसी ने मुझको पागल दीवाना कहा
मुकेश इलाहाबादी ------------------- 

काश! उन दिनों

काश!
उन दिनों
जब
हम दोनों प्रेम में थे
नहीं नहीं
सिर्फ मैं
तुम्हारे प्रेम में था
और
तुम हंस रही थीं
एक निश्छल और मासूम हँसी
तब हमारे पास भी
आज की तरह
होता एक स्मार्ट फ़ोन
और सेव कर सकता
तुम्हारी दूधिया खनखनाती हँसी
जिसे बार बार सुनता
अपने खामोश बियाबान में
और शायद तब मैं
उतना उदास न होता,
जितना आज हूँ -
तुम्हारे बगैर -
मेरी प्यारी सुमी,
तुम मेरी आवाज़ सुन रही हो न ?

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Tuesday, 17 May 2016

ज़िंदगी का क्या ?कट जाएगी

आवारगी छाई रही उम्र भर
परिंदगी रास आयी उम्र भर
भले ही तू छोड़ गयी मुझको
रूह याद करती रही उम्र भर
ये और बात हँसता रहा हूँ मै
चेहरे पे मुर्दनी रही उम्र भर
इक ठिकाने की तलाश में
ज़ीस्त भटकती रही उम्रभर
मुझसे बिछड़ कर वह भी
खुश न रह सकी उम्र भर
मुकेश इलाहाबादी ---------

Sunday, 15 May 2016

पुच्छल तारा

तुम,
आकाश गंगा का
सबसे चमकता सितारा
और मैं ??
एक पुच्छल तारा
जिसके बीच
हज़ारों हज़ार प्रकाश वर्ष की दूरी है

मुकेश इलाहाबादी -------

Thursday, 12 May 2016

फूलों के जंगल में खो जाऊँ

फूलों के जंगल में खो जाऊँ
तुझसे लिपट कर सो जाऊँ
तुम  फलक का चाँद बन मैं
स्याह रात की बाहें हो जाऊं
बादल बन बरसूँ छम छम
तन - मन तेरा भिगो जाऊँ

मुकेश इलाहाबादी -----  

Wednesday, 11 May 2016

प्यास सोचती है

अक्सर
प्यास सोचती है
समंदर के बारे में
जो हरहराता है
शान से अपने
पूरे खारेपन के साथ
बिना उसकी परवाह किये

मुकेश इलाहाबादी ---

तुम्हारी चुप्पी

शायद
तुम्हारी चुप्पी
एक रेगिस्तान है
जहाँ आते आते
मेरे प्यार की
नदी सूख जाती है
और मैं वंचित रह जाता हूँ
अपने समंदर से मिलने को

मुकेश इलाहाबादी ----------

Tuesday, 10 May 2016

अक्शर, बड़ी होती लड़कियाँ

बड़ी होती लड़कियाँ
------------------------

एक
----------

अक्शर,
बड़ी होती
लड़कियाँ
कारण - अकारण
छोटी या बड़ी
किसी भी बात पे
हंस देती हैं
खिल्ल खिल्ल
अगर वो अपनी
सहेली के साथ
या लड़कियों के झुण्ड में
हुईं तो धौल - धप्पा  करती हुईं
किसी भी बात पे
हंस - हंस के दोहरी
भी हो सकती हैं
पर,
ये हंसती हुई लड़कियाँ
ज़रा सी डाँट पे
सहम जाती हैं
और वापस ले लेती हैं
अपनी खुनक वाली
हँसी - हमेशा हमेशा के लिए
और फिर
कभी नहीं हँसती
और अगर कभी हंसती भी हैं
तो सिर्फ उतना
जितने की अनुमति होती है

दो
----------
अक्शर
बड़ी होती
लड़कियाँ
ग़ुम - शुम हो जाती हैं
और खो जाती हैं
अपने आप में
या जाने किस बियाबान में
और फिर ढूँढ़ने से भी
नहीं मिलती वे
बड़ी होती लड़कियाँ

अक्शर
यही बड़ी होती लड़कियाँ
खड़ी मिल जाती हैं
बॉलकनी या छत पे
बेवजह
निहारते हुए
आते जाते लोगों को
देर  तक और
बहुत दूर तक
जहाँ तक उनकी नज़र जाती है
या जहां पे जा के
सड़क मुड़ जाती है

तीन
------------

अक्शर
बड़ी होती
लड़कियां
जब,दिन भर के
खिलंदड़पन के बाद
सो जाती हैं
अस्त - व्यस्त तरीके से
और देखती हैं सपने
जिनमे होता है
रूई के फाहे सा
उड़ता बादल
एक घोडा
घोड़े पे बैठा राजकुमार
और नींद में ही
मुस्कुरा रही होती हैं
तभी एक सच्ची मुच्ची का
राक्षस आ के दबोच लेता है
और चीख पड़ती हैं
डर से ये बड़ी होती लड़कियाँ

कई बार
उनकी चीख से
राक्षस डर के भाग जाते हैं
पर कई बार वे
और जोर से दबोच ली जाती हैं

तब उनकी चीख
डूब जाती हैं अंदर ही अंदर
हमेशा हमेशा के लिए

और फिर
कभी नहीं वजह बेवजह हंसती
और अस्त व्यस्त तरीके से सोती हैं
ये बड़ी होती लड़कियाँ

उफ़ ! ये बड़ी होती लड़कियाँ

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Monday, 9 May 2016

मुझे चाहिए सिर्फ,

सुमी,
मुझे चाहिए
सिर्फ,
थोड़ी सी ज़मीन
थोड़ा सा आकाश
थोड़ा सा सूरज
और,
थोड़ा सा
तुम्हारा प्यार
बस !
और कुछ भी नहीं
कुछ भी ......... नहीं

मुकेश इलाहाबादी ---------

Saturday, 7 May 2016

बेशक़, तुम चाँद हो



बेशक़,
तुम चाँद हो
पर, मैं
बादल  नहीं
जो उड़ कर
लपेट ले तुमको
अपनी बाहों में

ना ही,
मैं नीले पानी का
पोखरा या झील हूँ
जिसके साफ़ और निष्पंद जल में
तुम रात उतर आओ
गलबहियाँ करो
और सुबह फिर टंग जाओ
आसमान में

और मेरे हाथ भी
इतने लम्बे नहीं हैं
जिन्हे बढ़ा कर
तुम्हे अपनी हथेली में छुपा लूँ
हमेशा हमेशा के लिए


इसलिए
मैंने खुद को अपने इरादों
और इक्षाओं को
गाड़ आया हूँ
इस जहाँन  की खुरदुरी ज़मीन में
इस उम्मीद पे
शायद किसी दिन
उसी जगह एक फूल खिलेगा
और उसकी भीनी भीनी खुशबू
के संग मैँ उड़ कर
बादलों संग घुल मिल जाऊंगा
और फिर तुम्हे अपनी बाँहों में ले लूँगा

(लिहाज़ा मेरी प्यारी सुमी
इस फूल के खिलने तक तुम
चाँद बन यूँ ही आसमान में खिले रहना)


मुकेश इलाहाबादी ---






   

Friday, 6 May 2016

जैसे, बाँध लेती हो तुम

जैसे,
बाँध लेती हो
तुम साड़ी के पल्लू में
छुट्टे पैसे
 टुडे मुड़े नोट
या फिर
कागज़ की कोई
ज़रूरी पुरजी
और कभी - कभी
टूटी अंगूठी
कान का बाला
या किसी का खत भी
और खोंस लेती हो
कस के गाँठ लगा के
अपनी कमर में
बस ! ऐसे ही
बाँध लो तुम
मेरा नाम
और भूल जाओ
हमेशा हमेशा के लिए
इस गाँठ को खोलना

(मेरी प्यारी सुमी,
सुन रही हो न , तुम्ही से कह रहा हूँ )

मुकेश इलाहाबादी ------------





जैसे, बाँध लेती हो तुम

जैसे,
बाँध लेती हो
तुम साड़ी के पल्लू में
छुट्टे पैसे
 टुडे मुड़े नोट
या फिर
कागज़ की कोई
ज़रूरी पुरजी
और कभी - कभी
टूटी अंगूठी
कान का बाला
या किसी का खत भी
और खोंस लेती हो
कस के गाँठ लगा के
अपनी कमर में
बस ! ऐसे ही
बाँध लो तुम
मेरा नाम
और भूल जाओ
हमेशा हमेशा के लिए
इस गाँठ को खोलना

(मेरी प्यारी सुमी,
सुन रही हो न , तुम्ही से कह रहा हूँ )

मुकेश इलाहाबादी ------------





Thursday, 5 May 2016

एक ही बात, अच्छी नहीं लगती

बस !
तुम्हारी,
एक ही बात,
अच्छी नहीं लगती
मुहब्ब्त के नाम पे
मुस्कुराना और
चुप रहना
मुकेश इलाहाबादी --------------

Wednesday, 4 May 2016

सिवाय दर्द के मिलता क्या है ?

सिवाय दर्द के मिलता क्या है ?
ईश्क़ करने से फायदा क्या है ?
बबूल बोया तो ही बबूल उगेगा,,
खार देख के मुर्ख रोता क्या है?  
मुकेश इलाहाबादी ---------------

Tuesday, 3 May 2016

कभी आँखों से तो कभी अदाओं से बोलती है

कभी आँखों से तो कभी अदाओं से बोलती है
सादगी आपकी सबके सर चढ़ के बोलती है
आप के दिल में चल रहा है क्या क्या मुकेश
ये भौंरे सी आँखें बड़ी खामोशी से बोलती हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

अंधेरी रातों में डूबा शहर देख जाओ

अंधेरी रातों में डूबा शहर देख जाओ
कभी तो आ के मेरा नगर देख जाओ

कोई मंज़िल नहीं फिर भी चल रहे हैं  
ऐसा  कारवां  ऐसा  सफ़र देख जाओ

तुम्हारे आ जाने से भी न बचेगी जान
मुकेश एक बार तुम,मगर देख जाओ

मुकेश इलाहाबादी --------------------

तिश्नगी को दो बूँद आब चाहिए

तिश्नगी को दो बूँद आब चाहिए
नींद आने को कुछ खाब चाहिए
मैंने इक और ख़त भेज है तुझे
हाँ या न कुछ तो जवाब चाहिए
हमें न ख़ुदा न खुदाई से ग़रज़
हम तो रिंद हैं हमें शराब चाहिए
हमको अपनी वफाओं का नहीं
तेरी बेवफाई का हिसाब चाहिए
कर तो लें हम भी ईश्क़ मग़र
तुम जैसा हुश्नो शबाब चाहिए
मुकेश इलाहाबादी -----------

तुम्हारे ईश्क़ के असर मे हूं

तुम्हारे ईश्क़ के असर मे हूं
इक अरसा हुआ सफर मे हूं
यहां कौन पूछेगा, हाल मेरा?
मै इक अजनबी शहर मे हूं
गु़मनाम ही रहना चाहता हूं
मगर मै सबकी नज़र मे हूं
तुमसे मुलाकात के बाद, मै
आज की ताजा खबर मे हूं
पार उतरुं तो हाल पूछ लेना
अभी तो मै बीच भंवर मे हूं
मुकेश इलाहाबादी ------------