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Tuesday, 31 January 2017

रात मैंने अपने ख्वाबों का

रात
मैंने अपने ख्वाबों का
क़त्ल कर दिया
ये बहुत ज़रूरी था
मुझे अपने वज़ूद को
ज़िंदा रखने के लिए

मुकेश इलाहाबादी --------------

दरिया ऍ ईश्क में बहना चहता हूँ

दरिया ऍ ईश्क में बहना चहता हूँ
तुम्हारी आँखों ने डूबना चहता हूँ
तमाम अनकहे किस्से हैं मेरे पास
तुम्हे अपने तजर्बे सुनाना चाहता हूँ
चला जाऊँगा फिर ये शहर छोड़ के
सिर्फ इक बार तुझसे मिलना चहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अहर्निश, गूंजती है

अहर्निश,
गूंजती है
मेरे अंतर्मन में
शोहम की तरह
तुम्हारे नाम की धुन

मुकेश इलाहाबादी ------

Saturday, 28 January 2017

इक, लंबी दूरी

Friday, 27 January 2017

मेरी, मन की माला में

मेरी, 
मन की माला में 
सिर्फ, तुम्हारे ही नाम के 
दाने हैं,
जिन्हें जपता रहता हूँ 
साँसों के आरोह-अवरोह के साथ 

मुकेश इलाहाबादी ---------==

तुम रहो मै रहूं और हो बारिसों का मौसम

तुम रहो
मै रहूं
और हो
बारिसों का मौसम
तुम रहो
मै रहूँ
तन्हा छत पे
लेटी हो जाड़े क़ी नर्म धुप
अपने दरमियान
तुम रहो
मैं रहूँ
ऊंघती दोपहर के
सूई पटक सन्नाटे में
बतिया रही हो
सिर्फ कुछ फुसफुसाहटे
कि काश ऐसा हो????

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,

तुम रहो मै रहूं

तुम रहो
मै रहूं
और हो
बारिसों का मौसम
तुम रहो
मै रहूँ
तन्हा छत पे
लेटी हो जाड़े क़ी नर्म धुप
अपने दरमियान
तुम रहो
मैं रहूँ
ऊंघती दोपहर के
सूई पटक सन्नाटे में
बतिया रही हो
सिर्फ कुछ फुसफुसाहटे
कि काश ऐसा हो????

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,

Thursday, 26 January 2017

वक़्त तुम तक आ के ठहर गया हो जैसे

वक़्त
तुम तक आ के
ठहर गया हो जैसे

तुम,
पहले भी प्यारी लगती थी
तुम,
अब भी, प्यारे लगते हो

मुकेश इलाहाबादी --------

Saturday, 21 January 2017

क्या अच्छा है, क्या बुरा है, बता देता है


क्या अच्छा है, क्या बुरा है, बता देता है
वक़्त, इंसान को सब कुछ सिखा देता है

राजा हो रंक हो की आलिम - फ़ाज़िल हों
वक़्त इक दिन सब को ख़ाक बना देता है

तुम किसी भी धातु के कलम से लिख लो
मुकेश बाबू वक़्त हर तहरीर मिटा देता है

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

Friday, 20 January 2017

बला की शोखी है तुम्हारी आँखों में

 बला की शोखी है तुम्हारी आँखों में
 गज़ब की मदहोशी है तेरी बातों में
तेज़  खंज़र सा चुभ जाता है सीने में
अजब सी धार है तुम्हारी अदाओं में
मुकेश इलाहाबादी -----------------

चाँद के उगने से, या फिर गुलों के खिलने से

चाँद के उगने से, या फिर गुलों के खिलने से
याद रखता हूँ तुझे किसी न किसी बहाने से

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

ख्वाबों ख्यालों में जिसे देखता रहा

ख्वाबों ख्यालों में जिसे देखता रहा
है तू वही चेहरा जिसे मैं ढूँढता रहा

इक  बार छुआ  था तुमने आँखों से
फिर मेरा वज़ूद ताउम्र महकता रहा

बादलों से निकला, इकपल को चाँद
फिर शबभर बदन मेरा सुलगता रहा

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Saturday, 14 January 2017

मेरी, तमाम कोशिशें

एक
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मेरी,
तमाम कोशिशें
नाकामयाब रही
उस शून्य को भरने में
जो उपजा है
तुम्हारे जाने के बाद

दो
---

शायद
मेरे ही हाथ
छोटे रह गए हों
उस चाँद को छूने में
जिसे पाना मेरी चाहत रही

मुकेश इलाहाबादी ---------


Friday, 13 January 2017

इक अनकहा सच


इक अनकहा सच
------------------

तुम
हवा हो
खाद हो
पानी हो
धूप हो
तुम इक, खिला हुआ
फूल हो
जिसकी महक से
सुवासित है
मेरा रोम - रोम

मुकेश इलाहाबादी---

Thursday, 12 January 2017

प्रतीक्षारत

आज भी
दरवाज़े से सटे
मेरे कान प्रतीक्षारत हैं
तुम्हारे आने की
पदचाप सुनने को
कि, आज भी
खुली हैं मेरी आँखे
तुम्हे देख लेने को जी भर के
बस एक बार
कि,
बस एक बार
तुम्हारे लौट आने की
प्रतीक्षा में
प्रतीक्षारत है मेरा रोम - रोम

सुमी - मेरी प्यारी सुमी

मुकेश इलाहाबादी ---

Wednesday, 11 January 2017

आज भी हर सांझ, चाँद के उगते ही

आज भी
हर सांझ,
चाँद के उगते ही
खिल उठता है,
महकता है रजनीगंधा
इस उम्मीद के पे
शायद आज तो तुम उतरोगे
चांदनी बन के
तब
लिपट के करेंगे केलि

मुकेश इलाहाबादी ---

सृष्टि क़े प्रथम दिवस से लेकर

सृष्टि क़े
प्रथम दिवस से लेकर
अंतिम दिनों तक
तुम्हारा था
तुम्हारा हूँ
तुम्हारा ही रहूंगा
सुमि। सुन रही हो न??
मुकेश इलाहाबादी ----

Sunday, 8 January 2017

बतियाता हूँ तुमसे

जैसे,

दरिया,
बतियाता है
लहरों से
कलकल- कलकल

सन्नाटा बतियाता है
हवा से,
गुपचुप - गुपचुप

भौंरा,
बतियाता है कली से
भुनभुन - भुनभुन


बस,
ऐसे ही मैं
बतियाता हूँ तुमसे
हर दिन - हर पल

मुकेश इलाहाबादी -----------

Saturday, 7 January 2017

कि ज़िगर चाक हुआ जाता है

कि ज़िगर चाक हुआ जाता है
जिस्म भी ख़ाक हुआ जाता है

दुनिया के लिए जल - जल के
आफ़ताब ख़ाक हुआ जाता है

गांव हो शहर हो कि बस्ती हो
घर - घर बाजार हुआ जाता है

मुकेश ज़माने की हवा ऐसी कि
बच्चा भी चालक हुआ जाता है

मुकेश इलाहाबादी -------------

Tuesday, 3 January 2017

शुकूं के दो पल नही देती

शुकूं के दो पल नही देती
ज़ीस्त फुरसत नहीं देती

तुझ संग  बैठूँ  बात  करूं
घड़ी इज़ाज़त नहीं देती  

मुकेश इलाहाबादी ------