हर धुन पे कोई गा सके वो गान नही हूं
हर साज पे बजा ले मै वो राग नही हूं
खिलता हूं फूल सा अपने महबूब के लिये
कोई भी सजा ले बालों में वो हार नही हूं
ज़माने भर की दास्तां छपी है रुह मे मेरी
हर कोई पढ़ले मुझे मै वो अखबार नही हूं
हजारों ज़ख्म खाये हैं जमाने से हमने पर
तमाम ग़म ले कर भी मै अश्कबार नही हूं
मुकेश उम्रभर जोडा किये टूटे दिल हमने
जिस्मों जॉ पे वार करे वो तलवार नही हूं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
हर साज पे बजा ले मै वो राग नही हूं
खिलता हूं फूल सा अपने महबूब के लिये
कोई भी सजा ले बालों में वो हार नही हूं
ज़माने भर की दास्तां छपी है रुह मे मेरी
हर कोई पढ़ले मुझे मै वो अखबार नही हूं
हजारों ज़ख्म खाये हैं जमाने से हमने पर
तमाम ग़म ले कर भी मै अश्कबार नही हूं
मुकेश उम्रभर जोडा किये टूटे दिल हमने
जिस्मों जॉ पे वार करे वो तलवार नही हूं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------