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Friday, 28 November 2014

हर धुन पे कोई गा सके वो गान नही हूं

हर धुन पे कोई गा सके वो गान नही हूं
हर साज पे बजा ले मै वो राग नही हूं

खिलता हूं फूल सा अपने महबूब के लिये
कोई भी सजा ले बालों में वो हार नही हूं

ज़माने भर की दास्तां छपी है रुह मे मेरी
हर कोई पढ़ले मुझे मै वो अखबार नही हूं

हजारों ज़ख्म खाये हैं जमाने से हमने पर
तमाम ग़म ले कर भी मै अश्कबार नही हूं

मुकेश उम्रभर जोडा किये टूटे दिल हमने
जिस्मों जॉ पे वार करे वो तलवार नही हूं

मुकेश इलाहाबादी --------------------------
 

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