जिस घाव को भरने में हमको इक ज़माना लगा
उस ज़ख्म को फिर से हरा करने में लम्हा लगा
जिसे लोग बेवज़ह पागल दीवाना कहा करते थे
हमें तो वो शख्श बातचीत में बहोत दाना लगा
कभी पतझड़ कभी बादल तो कभी लू के थपेड़े
तुम्हारे आने के बाद, मौसम कुछ सुहाना लगा
पंडित हो, क़ाज़ी हो या कि शहर का हाक़िम हो
मुझे तो हर शख्श तुम्हारे हुस्न का दीवाना लगा
मुकेश उस हादसे को फिर से क्यूँ याद दिलाते हो
जिस बात को भूलने में हमको इक ज़माना लगा
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------
उस ज़ख्म को फिर से हरा करने में लम्हा लगा
जिसे लोग बेवज़ह पागल दीवाना कहा करते थे
हमें तो वो शख्श बातचीत में बहोत दाना लगा
कभी पतझड़ कभी बादल तो कभी लू के थपेड़े
तुम्हारे आने के बाद, मौसम कुछ सुहाना लगा
पंडित हो, क़ाज़ी हो या कि शहर का हाक़िम हो
मुझे तो हर शख्श तुम्हारे हुस्न का दीवाना लगा
मुकेश उस हादसे को फिर से क्यूँ याद दिलाते हो
जिस बात को भूलने में हमको इक ज़माना लगा
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------