आँखे जागती हैं, ख्वाब सो गये
कभी बहती नदी थे,बर्फ हो गये
तमाम चेहरे बसे गये ज़ेहन में
यादों की भीड़ में हम खो गये
कभी हंसी -खुशी की मिसाल थे
क्या थे हम और क्या हो गये ?
फूल खिला रहे थे जिनके लिए
वो ही हमारे लिए कांटे बो गये
मुकेश तमाम खुशनसीब लोग
अपना सारा दुःख मुझसे रो गये
मुकेश इलाहाबादी -------------
कभी बहती नदी थे,बर्फ हो गये
तमाम चेहरे बसे गये ज़ेहन में
यादों की भीड़ में हम खो गये
कभी हंसी -खुशी की मिसाल थे
क्या थे हम और क्या हो गये ?
फूल खिला रहे थे जिनके लिए
वो ही हमारे लिए कांटे बो गये
मुकेश तमाम खुशनसीब लोग
अपना सारा दुःख मुझसे रो गये
मुकेश इलाहाबादी -------------
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