वह
चम्पा चंपा तो नहीं
पर उसका नाम "चम्पा" हो सकता है
वो गुलाबी नहीं
पर उसका नाम गुलाबो हो सकता है
वो गेंदा जैसी भी नहीं
पर उसका नाम गुलाबो भी हो सकता है
वैसे वो एक अलग प्रजाति का फूल होती है
जो "मास " का फूल होता है
जिसका रंग चम्पा जैसा होता है
गाल गुलाब से होते हैं
हँसी गेंदा सी होती है
जिसकी खिलने के पहले ही
खुशबू देवता - दानव और सभी मनुष्यों तक
पहुंच चुकी होती है
कोइ मानुष उसे तोड़ अपने गुलदान में लगाना चाहता है
कोइ देवता इस अभिलाषा में होता है
कि ये फूल मुझे भी चढ़ाया जाए
तब तक कोइ दानव उस मास के फूल को
तोड़ के रौंद चूका होता है
या गुलदान में भी सजा तो वो मानुष उसे दो चार
दिन बाद भूल चूका होता है
कई बार ये "हाड मास " का फूल सोचता है
काश मै न ही खिला होता
पर फूल का खिलना न खिलना
उसके हाथ में कहाँ होता है
मुकेश इलाहाबादी ------------------
चम्पा चंपा तो नहीं
पर उसका नाम "चम्पा" हो सकता है
वो गुलाबी नहीं
पर उसका नाम गुलाबो हो सकता है
वो गेंदा जैसी भी नहीं
पर उसका नाम गुलाबो भी हो सकता है
वैसे वो एक अलग प्रजाति का फूल होती है
जो "मास " का फूल होता है
जिसका रंग चम्पा जैसा होता है
गाल गुलाब से होते हैं
हँसी गेंदा सी होती है
जिसकी खिलने के पहले ही
खुशबू देवता - दानव और सभी मनुष्यों तक
पहुंच चुकी होती है
कोइ मानुष उसे तोड़ अपने गुलदान में लगाना चाहता है
कोइ देवता इस अभिलाषा में होता है
कि ये फूल मुझे भी चढ़ाया जाए
तब तक कोइ दानव उस मास के फूल को
तोड़ के रौंद चूका होता है
या गुलदान में भी सजा तो वो मानुष उसे दो चार
दिन बाद भूल चूका होता है
कई बार ये "हाड मास " का फूल सोचता है
काश मै न ही खिला होता
पर फूल का खिलना न खिलना
उसके हाथ में कहाँ होता है
मुकेश इलाहाबादी ------------------