परिन्दें कुछ पिंजड़ों में कुछ घोंसलों में उदास बैठे हैं
जब से जंगल जमीन और आसमा रेहन रखे गए हैं
चोरी -डकैती - राहजनी उसी तरह बदस्तूर जारी है
हाकिम कहता है हमने घर - घर चौकीदार रक्खे हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
जब से जंगल जमीन और आसमा रेहन रखे गए हैं
चोरी -डकैती - राहजनी उसी तरह बदस्तूर जारी है
हाकिम कहता है हमने घर - घर चौकीदार रक्खे हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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