Pages

Thursday, 30 June 2016

ख्वाबों के असमा

ख्वाबों के असमा को चांद सुनहरा चाहिए
मुकेश जो सिर्फ मेरा हो साथी ऐसा चाहिए
मुकेश इलाहाबदी ----------------------------

ख्वाबों के असमा

ख्वाबों के असमा को चांद सुनहरा चाहिए
मुकेश जो सिर्फ मेरा हो साथी ऐसा चाहिए
मुकेश इलाहाबदी ----------------------------

Wednesday, 29 June 2016

sumi ke jawaab

"सुनो सुन रहे हो ना , ख्वाहिशें कब मार दी तुमने मन में , जानते हो ना , मै भी तुम्हारी ही ख्वाहिश हूँ हूँ ना कहो........... जानती हूँ...मै.....हूँ अमरबेल सी ,तुमसे ही लिपटी तुमसे ही जन्मी तुमसे ही उपजी जानते हो ये अमर बेल की फितरत होती है आश्रित होती है जैसे मै तुम पर.........समर्पित ये समर्पण देखा होता तो यूँ ना मारते ख्वाहिशों को ,मगर नहीँ देखा तुमने , मेरा तुमसे जुड़ा होना , जी चाहता है तुम्हारे सीने पर हाथ रख दूँ , जगा दूँ मुरझाई ख्वाहिशें , उदास होंठों पे अपनी हँसी रख दूँ , मुझे तलाशती आँखो में , मेरा अक्स भर दूँ , तुम्हारी पीठ से टिक कर खो जाऊँ तुम्हारे , शब्दों के संसार में , मगर नहीँ हो सकता ऐसा , तुम भी जानते हो ,मै भी , क्योंकि...........मै नहीँ हूँ नहीँ हूँ बिल्कुल नहीँ , मै नहीँ तुम्हारी , "सुमि " अलविदा
सुनो , तुम सुन रहे हो ना ? ये सहरा की रेत कब भर ली तुमने अपने अंदर ,जानती हूँ , वजूद तुम्हारा रेत सा ही तो है ,देखी है रेत की फितरत ,मुट्ठीभर उठाओ ,एक एक कण अलग , तुम भी ऐसे ही हो ,सब में रह कर सब से अलग ,रेत जैसे ,कोई सिमट नहीँ सका तुम में !!कोई लिपट नहीँ सका ,कोई मन से भी ना लगा !!! मगर इस रेगिस्तान में तो होती है "मृगतृष्णा " "मृगमरीचिका "जो प्यास का अहसास होने पर दिखाई देती है ,बस यही वो सहारा होता है जो सहरा में तलाश को जन्म देता है !! तुम्हारी वही तलाश हूँ मै ,, जी चाहता है "वन कुसुम "बन खिल जाऊँ तुम्हारे होंठों पर , पलकों पर इश्क के सावन बन बरस जाऊँ , ये तपता सहरा भिगो दूँ , रेजा रेजा उतार लूँ अपने अंदर , बिखरे हुये तुम रेत की तरह , बाँध दूँ गीली मिट्टी सा !! ढाल दूँ उस मूरत में जिस से इश्क है मुझे , मगर क्या करूँ ये मृगतृष्णा और तुम और मै मिल न सके , क्योंकि , नहीँ हूँ मै..........हाँ नहीँ हूँ मै.....तुम्हारी सुमि "अलविदा "

Tuesday, 28 June 2016

अाँखों मे ख़्वाब अाने दे

अाँखों मे ख़्वाब अाने दे
गुल ए ईश्क खिलाने दे

ज़माने से  गमज़दा हूँ
थोड़ा तो  मुस्कुराने दे

खिड़कियों को खोल दे  
ताजी हवा तो, अाने दे

जिस्म के ठंडे लहू मे
कुछ तो उबाल अाने दे

तेरे अरीज़ पी ये लट,,
मुकेश को हटाने तो दे

मुकेश इलाहाबादी -----

Friday, 24 June 2016

जब तुम चुप रहती हो

जब
तुम चुप रहती हो
अॉर कुछ नही बोलती
या फिर
मे्रे लतीफों पे
मुस्कुराना चाह के भी
नही मुस्कुराती,
या कि खुल के
हँसना चाह के भी नही हँसती
सच तब
ऐसा लगता है
जैसे,
कोई बच्चा जिद्दन
मा की जोद से
नही उतरना चाहता
या कि,
चांद बादलों से
बाहर नही अाना चाहता है
या कोई, पहाड़ी नदी
घाटियों मे ही उमड़ - घुमड़ के
रह जाए
अॉर मैदान मे न उतरे
पर,
तुम मुझे
उस चुप्पी मे भी
बहुत अच्छी लगती हो

सच बहुत प्यारी
लगती हो
तुम
मेरी प्यारी सुमी 

Thursday, 23 June 2016

शहर भर मे अपना चर्चा है तो हुअा करे

शहर भर मे अपना चर्चा है तो हुअा करे
ज़माना बदनाम करता है तो किया करे
मै तो अपने अाशिक की इबादत करूंगा
कोई मुझे काफ़िर कहता है तो कहा करे
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Wednesday, 22 June 2016

सज़ा ही सज़ा हो गई

सज़ा ही  सज़ा हो गई
ज़ीस्त बे मज़ा हो गई
तुमसे लड़ाई की फ़िर
तुम्ही से रजा हो गई
बहार  मुस्काना  तेरा
नाराज़गी क़ज़ा हो गई

मुकेश इलाहाबादी ---

Tuesday, 21 June 2016

ज़िंदगी तनाव मे है

ज़िंदगी तनाव मे है
नदी के बहाव मे है
पतंग कैसे उड़ेगी ?
हवा के दबाव मे है
तुम्हारी सारी यादें
मे्रे रखरखाव मे है
मुकेश कुछ अंगारे
देख तो कुछ अंगारे
इस बुझे अलाव मे है

मुकेश इलाहाबादी --

यूँ सज संवर के अईना न देखा करो!

यूँ सज संवर के अईना न देखा करो!  
अाईने के भी दिल कांच के होते हैं !
मुकेश इलाहाबादी -------------------

Thursday, 16 June 2016

चाहत थी, उजाला हो,

चाहत थी,
उजाला हो,
और, मैंने पी लिया 
ढेर सारा अँधेरा
अब मैं,
जल रहा हूँ -
सूरज की तरह

कभी चाहा था,
भर लूँ
चाँद को बाँहों में
और मैं,
उड़ने लगा
आसमान में
बादलों सा

सुमी ! सुन रही हो न ??

मुकेश इलाहाबादी -- 

Monday, 13 June 2016

देखना ! फूल सा महकेंगे



देखना ! फूल सा महकेंगे
अब्र के बादल सा बरसेंगे

बहुत दिनों  बाद मिले  हैं
अब, ये देर तक  चहकेंगे  

दोनों अपना  सुख - दुःख
इक दूजे से कहेंगे -सुनेंगे

बिछड़ कर फिर ये दोनों
बहुत देर तक सिसकेंगे

यादों वादों और, बातों  के
लम्बे -लम्बे ख़त लिखेंगे

उदास तनहा लम्हों में ये
मुकेश की  ग़ज़लें सुनेंगे

मुकेश इलाहाबादी -------

Friday, 3 June 2016

काश !! मेरे पास कोई ऐसा गुल्लक होता

काश !!
मेरे पास
कोई ऐसा गुल्लक होता
जिसमे मैं
अपने हिस्से में मिले दिनों से
थोड़ा -थोड़ा वक़्त
बचा के रख लेता
और उसे
उस वक़्त खर्च करता
जब तुम मुझसे मिलने
बहुत थोड़ा वक़्त ले के आती

मुकेश इलाहाबादी -----------

रात एक नदी है

रात
एक नदी है
और
तुम्हारे ख्वाब
एक नाव
जिसपे बैठ के
मैं रोज़ पार करता हूँ
इस नदी को

मुकेश इलाहाबादी ---

Thursday, 2 June 2016

मैंने भी मुखौटा लगा लिया है

मैंने भी
मुखौटा लगा लिया है
अब मुझे भी
ज़िंदगी जीने में
सहूलियत हो गयी है

मुकेश इलाहाबादी ------------ 

झूठ के पाँव नहीं होते

झूठ के
पाँव नहीं होते
फिर भी
सच से
ज़्यादा तेज़
दौड़ता है

मुकेश इलाहाबादी --

Wednesday, 1 June 2016

ऎ फ़लक़ तू ही बता कि,अब मै क्या करूँ ?

ऎ फ़लक़ तू ही बता कि,अब मै क्या करूँ ?
अपनी हद कम कर लूँ या तुझसे बातें करूँ ?
मुकेश इलाहाबादी -----------

कस्तूरी गंध के लिए

मैं
अपने तीरो कमान
सहित
भाग रहा हूँ
आखेट के लिए
तुम्हारे
पीछे पीछे
और तुम
मुझे भगा रही हो  
एक चतुर मृगी की तरह
और मैं पागल हुआ जा रहा हूँ
तुम्हारी देह से
निकलती कस्तूरी गंध के लिए

मुकेश इलाहाबादी ---------------