जब
तुम चुप रहती हो
अॉर कुछ नही बोलती
या फिर
मे्रे लतीफों पे
मुस्कुराना चाह के भी
नही मुस्कुराती,
या कि खुल के
हँसना चाह के भी नही हँसती
सच तब
ऐसा लगता है
जैसे,
कोई बच्चा जिद्दन
मा की जोद से
नही उतरना चाहता
या कि,
चांद बादलों से
बाहर नही अाना चाहता है
या कोई, पहाड़ी नदी
घाटियों मे ही उमड़ - घुमड़ के
रह जाए
अॉर मैदान मे न उतरे
पर,
तुम मुझे
उस चुप्पी मे भी
बहुत अच्छी लगती हो
सच बहुत प्यारी
लगती हो
तुम
मेरी प्यारी सुमी