Pages

Thursday, 16 June 2016

चाहत थी, उजाला हो,

चाहत थी,
उजाला हो,
और, मैंने पी लिया 
ढेर सारा अँधेरा
अब मैं,
जल रहा हूँ -
सूरज की तरह

कभी चाहा था,
भर लूँ
चाँद को बाँहों में
और मैं,
उड़ने लगा
आसमान में
बादलों सा

सुमी ! सुन रही हो न ??

मुकेश इलाहाबादी -- 

No comments:

Post a Comment