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Wednesday, 31 January 2018

हमेशा भीड़ में मिलते हो कभी अकेले में भी मिला करो

हमेशा भीड़ में मिलते हो कभी अकेले में भी मिला करो
दुनियादारी के अलावा कुछ और भी गुफ्तगू किया करो

कभी धन, कभी घर कभी कुछ और तो कभी कुछ और
मुकेश  दो चार पल तो  ईश्क़ के लिए भी तो जिया करो

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

Sunday, 28 January 2018

प्रभात फेरी



कॉलोनी के कुछ लोग

झांझ
मजीरा, ढोलक
तालियाँ बजाते
सूरज निकलने के पहले
कॉलोनी के कुछ लोग निकल पड़ते हैं,
प्रभात फेरी के लिए
जाने किस शुभ - प्रभात की आगवानी के लिए

एक दो खाये अघाये अधेड़
डायबिटीज़ और बीमारियों से घिरे कुछ बुजुर्ग
कुछ बुढ़ाती या बूढ़ी हो चुकी महिलाऐं
एक दो बेरोज़गार युवक और चंद धार्मिक गृहिणियाँ
अल्ल सुबह घर के तमाम सदस्यों को सोते छोड़
धीरे से बंद करते हैं किवाड़ और
एक - एक कर इकट्ठे होते हैं कॉलोनी के मंदिर पे
या पार्क के किसी कोने में
और निकल पड़ते हैं - प्रभात फेरी पे
जाने किस शुभ प्रभात की अगवानी के लिए

सुबह की आगवानी के लिए निकले इन भक्तों की अगवानी करता है
डंडा फटकारता हुआ ,
रात भर का जगा चौकीदार
गर्दन को मोड़ के पेट पे थूथन रखे, लेटे ,कान और पूछ हिलाता स्वान
स्वागत करता है इन प्रभात फेरी करने वालों का
और स्वागत करती है सुबह की मंद - मंद बहती समीर
और उनका करता है स्वागत हलवाई की भट्टी गर्म करता बाल मज़दूर

कभी रिरियाते
कभी सुर में तो कभी बेसुरे होकर आगे पीछे हो कर
चल देती है चंद लोगों की टोली प्रभात फेरी के लिए
मन ही मन ये सोचते हुए कि वे एक पुण्य का काम कर रहे हैं
प्रभात फेरी कर रहे हैं -
और जो नहीं शामिल हैं प्रभात फेरी में वे पापी और कामी हैं

सुबह की पाली में जाने वाले
जल्दी जल्दी भागते हुए लोग एक उचटती नज़र डाल चल देते हैं
अपने गंतव्य
कुछ अपनी घरों से झांक देख लेते हैं कुतूहल वश
इनके आगे बढ़ते ही फाटक से दरवाज़ा बंद कर घुस जाते हैं अपने दड़बे में
वहीं कुछ लोग कुनमुनाते हुए बिस्तर में करवट बदल लेट जाते हैं
मन ही मन प्रभात फेरी वालों को इतनी सुबह डिस्टर्ब करने के लिए
तो कुछ लोगों के लिए प्रभात फेरी करती हैं अलार्म का काम
इनकी आवाज़ सुन उठ जाते हैं एक नई दिन चर्या के लिए

कॉलोनी का चककर लगा भक्ति भाव और कुछ विशिष्टता का भाव लिए
लोग फिर निकल पड़ते हैं - दूध लेने या फिर अपने घरों को
बिना यह देखे कि शुभ प्रभात हुआ या नहीं


मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------
क्रमशः


  

Saturday, 27 January 2018

किसी को भरम में कभी न रक्खा करो

किसी को भरम में कभी न रक्खा करो
निभा न सको तो दोस्ती न किया करो

गर, रोशनी न कर सको, किसी के घर
किसी दहलीज़ से चराग बुझाया न करो

मेहमान नवाज़ी के अपने उसूल होते हैं
खातिरदारी न  करो, तो बुलाया न करो 

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Friday, 26 January 2018

खुद को घिस कर चन्दन हो जाओ

खुद को घिस कर चन्दन हो जाओ
कुछ ऐसा कर कि मधुबन हो जाओ

देख ले कोई भी अपनी सूरत तुझमे
ख़ुद को ऐसा माँझो, दर्पन हो जाओ

सारे तीरथ मात पिता के चरणों में
ऐसी सेवा कर,कि सरवन हो जाओ

सजन  सुजान कह गए देह माटी की
पर कर्मो से, अनमोल रतन हो जाओ

भले गीत, ग़ज़ल, रुबाई कुछ भी गा
कुछ तो ऐसा गा मन मगन हो जाओ

मुकेश इलाहाबादी -------------------

फ़क़त आहें भर कर रह गए हम

फ़क़त आहें भर कर रह गए हम
तेरी मासूमियत पे मर गए हम

तेरे ज़ुल्फ़ों में हैं पेंचों ख़म इतने
सुलझाने निकले उलझ गए हम 

यूँ तो किसी की धौंस सहते नहीं 
जाने क्यूँ तेरे नखरे सह गए हम   

पहनने ओढ़ने का शौक नहीं हैं
तुझसे मिलने को सज गए हम

रात ,बेवज़ह घुमते रहे सड़कों पे
सुबह हुई तो मुकेश घर गए हम

मुकेश इलाहाबादी --------------

Wednesday, 24 January 2018

दिल कभी अपना किसी और को न दिया

दिल कभी अपना किसी और को न दिया
सिवाय तेरे किसी और से प्यार न किया

बस इक बार मुख़्तसर सी मुलाकत हुई
बाद उसके, कभी उसका  दीदार न हुआ

ये और बात ग़ज़ल में कह दिया करता हूँ
मुकेश रू ब रू कभी मैंने इज़हार न किया

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

तुम कहते हो मै तुझे भूल जाऊँ

तुम कहते हो मै तुझे भूल जाऊँ
ये क्यूँ न हीं कहते  मै मर जाऊँ

मेरे पास काँच का दिल है मुकेश
लोग पत्थर लिए बैठे हैं जंहा जाऊँ

मुकेश इलाहाबादी -------------------

मेरे शहर में मेरा क़द

मेरे शहर में मेरा क़द
मुझसे
बड़ा नहीं तो
छोटा भी नहीं था
मेरे शहर में मेरा क़द
कम से कम मेरे बराबर तो था

27 साल पहले राजधानी आते ही
मुझे लगा मेरा क़द बहुत कम हो गया है
मैंने घबरा के खुद को देखा - नापा
पाया मै तो उतना ही बड़ा हूँ
जितना बड़ा अपने शहर में था

फिर मैंने गौर से देखा तो पाया
मेरे अगल बगल मुझसे मेरे क़द से काफी बड़े बड़े लोग
भागते दौड़ते चले जा रहे हैं
मुझे लगा शायद भागने - दौड़ने के कारण इन सब का
क़द इतना बढ़ गया है
लिहाज़ा मै भी उनके साथ साथ भागने लगा - दौड़ने लगा
तेज़  और तेज़ - और तेज़
इतनी तेज़ की दौड़ते दौड़ते मै आदमी से घोडा बन गया
और घोडा बन कर और तेज़ तेज़ भागने लगा
जिसकी पीठ पे ढेर सारा असबाब था , पर
यह सच कर खुश होता रहा अब मेरा क़द भी औरों से बड़ा और बड़ा हो जाएगा
भागते - भागते मै घोड़े से पहाड़ में तब्दील हो गया
और मेरी पीठ पे रखा असबाब एक घने जंगल में तब्दील हो गया
पर मै इतने बड़े जंगल को ले कर भी भागता रहा भागता रहा
अपने क़द को बढ़ाता रहा
हालाकी,
भागते भागते मै डायबिटिक हो गया
चिड़चिड़ा हो गया
अपनों से दूर हो गया
मेरा घर तमाम बीमारियों का घर हो गया
मगर फिर भी भागना जारी रहा
ज़ोर ज़ोर और ज़ोर से
यंहा तक कि भागते भागते मुँह से फिचकुर निकलने लगा
मै थक कर गिर गया
और मै हांफते हफ्ते बैठ गया
और  मैंने अपना क़द नापना चाहा कि \
इतना भागने दौड़ने के बाद मेरा क़द कितना बढ़ा

तो मुझे पता लगा दर असल मेरा क़द तो वही का वही है
मेरी अगल बगल भागने वालों के जैसा ही

दर असल बात इतनी थी कि
वे सभी अपना क़द विकास के सूरज की तिरछी रोशनी में
बनती लम्बी परछाई से अपना क़द नापते थे
और मै अपने आप को अपने असली क़द में

(अब मै अपनी जगह खड़े हो कर अपने क़द से ही खुश हूँ )

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------------


सीधा- सादा हूँ दुनियादारी नहीं आती


सीधा- सादा हूँ दुनियादारी नहीं आती
शब्दों की हमको बाज़ीगरी नहीं आती

यँहा तो रोज़ मुखौटे बदल लेते हैं,लोग 
मै, बदल जाऊँ ये अदाकारी नहीं आती

लाख कोशिशों के बाद भी ठगा जाता हूँ
औरों जैसी क्यूँ समझदारी नहीं आती

जो जी में आता है, लिख देता हूँ मुकेश
अच्छा लिखूँ ऐसी कलमकारी नहीं आती

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

Monday, 22 January 2018

खिलाना चाहता हूँ एक फूल


खिलाना चाहता हूँ
एक फूल
जिसमे खुशबू तो हो
पर पंखुड़ी न हो

मै, करना चाहता हूँ  प्रेम 
जिसमे रूह तो हो
पर पात्र न हो

मै बनाना चाहता हूँ
एक चित्र जिसमे रूप तो हो
पर रेखाएं न हों

मै लिखना चाहता हूँ
एक कविता जिसमे भाव तो हों
पर शब्द न हों 

मुकेश इलाहाबादी -------------

Wednesday, 17 January 2018

न कोई शोर न कोई शराबा हुआ

न कोई शोर न कोई शराबा हुआ
क़त्ल जब मेरे एहसासों का हुआ

हम ही सबको अपना मानते रहे
कोई आज  तक  न  हमारा हुआ

ये पहली बार नहीं जब दिल टूटा
कई बार मेरे साथ ये हादसा हुआ 

मिलने आ जाओ कभी सहरा में
दिख जाऊँगा रेत् सा बिखरा हुआ

कोई तो बता दे कँहा मेरी मंज़िल
मै हूँ इक मुसाफिर भटका हुआ

मुकेश इलाहाबादी ---------------

अँधेरी रातों में चाँद सितारा मत ढूंढ

अँधेरी रातों में चाँद सितारा मत ढूंढ
मै  समन्दर हूँ मेरा किनारा मत ढूंढ

मै गया वक़्त हूँ, लौट के न आऊँगा
मुझे बेवज़ह अब तू,दोबारा मत ढूंढ

अन्धो के शहर में चराग़ नहीं होते
फज़ूल  में यंहा  उजियारा मत ढूंढ़ 

बुझ चुके, हैं शोले तन -के - मन के
तू चिंगारी मत ढूंढ अंगारा मत ढूंढ

मुकेश, अपने पैरों पर चलना सीख 
लाठी मत ढूंढ कोई सहारा मत ढूंढ़

मुकेश इलाहाबादी -----------------

Tuesday, 16 January 2018

जिस्म थरथराता है, और होंठ कंपकंपाते हैं

जिस्म थरथराता है, और होंठ  कंपकंपाते  हैं
धड़कने कह देती हैं, जो हम नहीं कह पाते हैं

कौन कहता है,चाँद की तासीर ठंडी होती है
चाँदनी रातों में तमाम जिस्म जल जाते हैं

हम नवाबों के लिए फूल भी वज़नी होता है
ये और बात तेरे नखरे हम  शौक से उठाते हैं

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

Monday, 15 January 2018

हर रात तुम्हारे ख्वाब कुछ कह जाते हैं

हर रात तुम्हारे ख्वाब कुछ कह जाते हैं
शुबो मेरे होंठ ग़ज़ल सा गुनगुना लेते हैं

तुम हमसे लब से तो कुछ नही कहते हो
थरथराते हुए लब बहुत कुछ कह देते हैं

यूँ  तो आदतन तुम खामोश ही रहती हो
गर हँसती हो तो भौंरे फूल समझ लेते हैं

गर मेरे चले जाने से तुम खुश रहती हो
यकीनन मै चला जाऊँगा, मै कहे देता हूँ

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

अभी परों में जान बाकी है

अभी परों में जान बाकी है
हौसलों की उडान बाकी है

कुछ और दर्द दे सकते हो
होठों पे मुस्कान बाकी है

तुम तो अभी से रोने लगे
असली दास्तान बाकी है 

ज़िंदगी की पाठशाला में 
कई  इम्तिहान बाकी  हैं

स्याह खामोशी अभी भी
हमारे दरम्यान बाकी है

मुकेश इलाहाबादी ------

Sunday, 14 January 2018

वक़्त के खामोश दरिया में

वक़्त
के खामोश दरिया में
हम दोनों
पाँव लटकाये बैठे हैं

दूर,
जीवन का सूरज अस्तगत है

रात,
अपना श्रृंगार करे

इसके पहले 'मै '
तुम्हरी स्याह ज़ुल्फ़ों
में ख़ुद को क़ैद कर के
खो जाना चाहता हूँ

न ख़त्म होने वाली
रात की नदी में

ओ ! मेरी सुमी
ओ ! मेरी प्रिये

मुकेश इलाहाबादी --------------

Friday, 12 January 2018

तुम हंसती हो तो ऐसा लगता है,

तुम
हंसती हो तो ऐसा लगता है,
जैसे
किसने ने अनार के दाने बिखरा दिए हों
सब कुछ - रस व लालिमा से भर गया हो

सच -- तुम बहुत प्यारा हँसती हो
देखो - इस तारीफ से गुस्सा मत होना
बस - मन में मुस्कुरा के -
थोड़ा सा सिर हिला देना
बस - और मन ही मन कहना
बुद्धू - पागल

मुकेश इलाहाबादी -------------

Thursday, 11 January 2018

तू मुझसे रूठे मै तुझे मनाऊँ

तू मुझसे रूठे मै तुझे मनाऊँ
तेरे बालों में हरश्रृंगार लगाऊँ

गीत नज़्म ग़ज़ल रुबाई या
फिर तुमको लतीफा सुनाऊँ

कभी तुझको  गुद गुदाऊँ तो
कभी बाँहों में झूला  झुलाऊँ

तू जिस बात से खुश होजाये
मुकेश वही बातें तुझे सुनाऊँ

मुकेश इलाहाबादी ------------


Wednesday, 10 January 2018

तुम्हारे ख्वाबों में होना इत्र के कुंड में डूबना होता है मुकेश इलाहाबादी --------------


तुम्हारे
ख्वाबों में होना
इत्र के कुंड में डूबना होता है

मुकेश इलाहाबादी --------------होता है

मुकेश इलाहाबादी --------------

Saturday, 6 January 2018

कुछ लोग प्यारे दीखते हैं ,

सुमी,
जानती हो ?
कुछ लोग प्यारे दिखते हैं ,
कुछ लोग प्यारे होते भी हैं 

कुछ लोग,
प्यारे दिखते हैं
प्यारे होते है भी हैं

और प्यारे लगते भी हैं। 

बस ! तुम मेरे लिए वही हो,

देखो, इस मेरी इस बात पे
तुम मुस्कुराना नहीं, हँसना नहीं।

मुकेश इलाहाबादी ------------------- 




इस तरफ़ दूर तक रेत् का किनारा - मै

इस तरफ़  दूर तक रेत् का किनारा - मै
उस तरफ़ दूर तक  हरे भरे मंज़र - तुम

बीच में  इक खामोशी दरिया बहता है

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Friday, 5 January 2018

कभी इस नाचीज़ पे भी कुछ करम किया करो


कभी इस नाचीज़ पे भी कुछ करम किया करो
झूठ - मूठ ही सही हाल - चाल पूछ लिया करो

रम न पियो व्हिस्की न पियो सिगरेट न पियो
मगर जामे ईश्क़ तो कभी कभी पी लिया करो

हम भी इसी शहर में  मुद्दतों से रहते हैं, मुकेश
गर हमारी गली से गुज़रो,तो मिल लिया करो

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------


तुम्हारे ज़िक्र में शामिल रहूँ

 तुम्हारे ज़िक्र में शामिल रहूँ
 तुम्हारे फ़िक्र में शामिल रहूँ

कोशिश रहती है अपनी, कि
तेरी नज़रों में  शामिल रहूँ 

मुकेश इलाहाबादी ---------

Thursday, 4 January 2018

आधी सदी चलते रहे

आधी सदी चलते रहे
यूँ ही तनहा बढ़ते रहे
वो और लोग रहे होंगे
कारवाँ में चलते रहे
धुंध तीरगी आँधियाँ
मुश्किलों में बढ़ते रहे
सोचता हूँ तो लगता है
ज्यूँ ख्वाब में चलते रहे
मुहब्बत आग का दरिया
मुकेश डूब कर बढ़ते रहे
मुकेश इलाहाबादी ----