फ़क़त आहें भर कर रह गए हम
तेरी मासूमियत पे मर गए हम
तेरे ज़ुल्फ़ों में हैं पेंचों ख़म इतने
सुलझाने निकले उलझ गए हम
यूँ तो किसी की धौंस सहते नहीं
जाने क्यूँ तेरे नखरे सह गए हम
पहनने ओढ़ने का शौक नहीं हैं
तुझसे मिलने को सज गए हम
रात ,बेवज़ह घुमते रहे सड़कों पे
सुबह हुई तो मुकेश घर गए हम
मुकेश इलाहाबादी --------------
तेरी मासूमियत पे मर गए हम
तेरे ज़ुल्फ़ों में हैं पेंचों ख़म इतने
सुलझाने निकले उलझ गए हम
यूँ तो किसी की धौंस सहते नहीं
जाने क्यूँ तेरे नखरे सह गए हम
पहनने ओढ़ने का शौक नहीं हैं
तुझसे मिलने को सज गए हम
रात ,बेवज़ह घुमते रहे सड़कों पे
सुबह हुई तो मुकेश घर गए हम
मुकेश इलाहाबादी --------------
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