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Saturday, 25 February 2017

जब, तुम ठुनकते हुए जब नाराज़ होती हो --

जब,
तुम
ठुनकते हुए जब
नाराज़ होती हो
हमें मालूम है
तब तुम लाड़ में होती हो

जब कभी तुम
चुप चाप होती हो
हमें मालूम होता है
अंदर ही अंदर कोई
दर्द पीती रहती हो

हमें मालूम होता है,
तुम कब दर्द में होती हो
तुम कब प्यार में होती हो

गर नहीं मालूम तो ये
तुम किसके प्यार में होती हो ?

सुमि !!!

मुकेश इलाहाबादी --------

नाराज़ होती हो
हमें मालूम है
तब तुम लाड़ में होती हो

जब कभी तुम
चुप चाप होती हो
हमें मालूम होता है
अंदर ही अंदर कोई
दर्द पीती रहती हो

हमें मालूम होता है,
तुम कब दर्द में होती हो
तुम कब प्यार में होती हो

गर नहीं मालूम तो ये
तुम किसके प्यार में होती हो ?

सुमि !!!

मुकेश इलाहाबादी --------

Thursday, 23 February 2017

सलीके से मिले तमीज से मिले


सलीके से मिले तमीज से मिले
सभी, झूठ  के लिबास में मिले

हँसे भी सभी, खिलखिलाये भी
वे दिल नहीं,जिस्म ले के मिले

जानता हूँ कोई काम न आएगा
फिर भी इक उम्मीद ले के मिले

वो भी प्यासा हम भी प्यासे थे
हम दोनों नदी के किनारे मिले

निकले तो थे, रोशनी  के लिए
मगर हमें अँधेरे ही अँधेरे मिले

मुकेश इलाहाबादी ------------

हक़ से कोई मुझसे रूठे तो

हक़  से  कोई  मुझसे रूठे तो
टूट कर कोई मुझको चाहे तो
नाज़ो - नखरे उठा मैं तो लूँ
पहले मुझको अपना बोले तो
खुशबू -  खुशबू हवा बनूँ पर
कोई मुझ संग संग डोले तो
गीत ग़ज़ल नज़्म निछावर
पहले मेरे संग कोई गाये तो
मुकेश इलाहाबादी -----------  

Wednesday, 22 February 2017

पानी रेत् में तब्दील हुआ

पानी रेत् में तब्दील हुआ
तुम्हारे जाने के बाद हुआ

चन्द लम्हे की मुलाकात
शह्र में चर्चा ए आम हुआ

तुम मुझसे मिलने आओ 
ऐसा सिर्फ इक बार हुआ

गले लगने को कहा,क्यूँ  
चेहरा हया से लाल हुआ

इक दर्द था मेरे सीने में, 
अब जा के आराम हुआ


मुकेश इलाहाबादी -------

Tuesday, 21 February 2017

तुम्हारी, नाक की

तुम्हारी,
नाक की
लौंग चमकती है
ध्रुव तारा सा
मेरे जीवन के उत्तर में
मुकेश इलाहाबादी ---

Monday, 20 February 2017

तू चाँद भी तो नहीं

अगर
तू इक खूबसूरत ख़ाब है
तो ख्वाब ही रह
अगर,
तू हकीकत है
तो, मिलने तो आ

मुकेश इलाहाबादी -------

तू
चाँद भी तो नहीं
मैं, फ़लक़ तक उड़ूँ
और पा लूँ , तुझे

तू , ख्वाब भी नहीं
मैं , आँखें बंद करूं
पलकों में तू आ बसे

तू , झरना भी नहीं
कि बहे तू
मेरे पर्वत से सीने पे

यहाँ तक कि
तू बादल भी नहीं कि

मैं धरती बन जाऊँ
और तू बरसे - झम- झम - झम


मैँ तो हारा,
अब ! तू ही बता तू क्या है?


मुकेश इल्लाहाबदी ------------

Sunday, 19 February 2017

तुम आते हो तो आता है बंसत

तुम आते हो तो आता है बंसत
वर्ना जाने कहाँ रहता है बसंत

मस्ती, फूल, खुशबू, झूला संग
तेरी आँखों  में  देखा  है बसंत

तितली भौंरा चिड़िया बुलबुल
कितना तो बतियाता है बसंत

जब जब तुम लहराओ आँचल
तुझसे मिल, इठलाता है बसंत

तेरी झील सी नीली आँखों  में
मुकेश ने लहराते देखा है बसंत


मुकेश इल्लाहाबदी ------------

Friday, 17 February 2017

मेरी आँखों की झील में तेरी तस्वीर

मेरी आँखों की  झील में तेरी तस्वीर
महताब पानी में लरज़ता हुआ देख
यूँ तो मैं उड़ता हुआ बादल आवारा
कभी अपनी बाँहों में सिमटता देख
गज़रा हूँ अपने गेसुओं में सजा कर
तू फिर आईने में अपना चेहरा देख

आँख में आँसू आये, बहुत

आँख में आँसू आये, बहुत 
मगर हम मुस्कुराये बहुत 

तुम्हारा ज़िक्र छिड़ गया 
और फिर हम रोये बहुत 

रात मुस्कुराता चाँद देखा 
फिर तुम याद आये बहुत 

दर्द ने बयाँ कर दिया वर्ना 
ज़ख्म हमने छुपाये बहुत 

हया ने कुछ कहने न दिया 
बाद में हम पछताये बहुत 

मुकेश इलाहाबादी --------

Thursday, 16 February 2017

दिले गुलशन उजाड़ के बिलखता हुआ देख

दिले  गुलशन उजाड़ के बिलखता हुआ देख
तेरी यही तमन्ना है तो मुझे रोता हुआ देख

अगर तू  पत्थर है तो, इक बार छू ले मुझको
मुझे काँच सा छन्न - छन्न टूटता हुआ देख

सोचता हूँ  मैं भी, इक दिन सूरज बन जाऊँ
तू ज़मी पे रहके, मुझको सुलगता हुआ देख

इक लम्हे को सही बेनक़ाब झरोखे पे तो आ
राह चलते हुए मुसाफिर को रुकता हुआ देख

मेरा वज़ूद फूलों की सिफ़त रखता है मुकेश
मसल दे पंखुरी - पंखुरी बिखरता हुआ देख

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

इसी बात का गुनाहगार है

इसी बात का गुनाहगार है 
दिल  तेरा ही तलबगार है 
बाहर - बाहर सर्द दिखेगा 
ये दिल अंदर से अंगार है 
मुकेश इलाहाबादी -------

रात का अँधेरा बटोर लाया

अहमक हूँ बेवजह फिरता हूँ

Wednesday, 15 February 2017

गुल ,गुलदश्ता या कि फिर चाँद सितारा ले आऊँ

गुल ,गुलदश्ता या कि फिर चाँद सितारा ले आऊँ
उलझन है क्या पहनूं जब मैं तुझसे मिलने आऊँ  
हुआ इंतज़ार का इक - इक पल, सदी से बढ़ कर
तुझसे मिलने की खातिर उड़न खटोला से आऊँ ?
सुन ! सांझ की बेला नदी किनारे मिलने आ जा
या  कह दे तो, मैं तुझसे मिलने डोली ले के आऊँ?
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

यादों की मुंडेर पे



आँख
खुलते ही
यादों की मुंडेर पे
चहचहाने लगती है
तुम्हारे नाम की चिड़िया
और फिर
दिन भर
फुर्र- फुर्र उड़ने के बाद
साँझ होते ही
अपने पंखो पे
चोंच रख के सो जाती है
एक बार फिर चहचहाने के लिए
सुबह होते ही यादों की मुंडेर पे
तुम्हारे नाम की चिड़िया

सुमी, के लिए

मुकेश इलाहाबादी -----

Friday, 10 February 2017

लोग हमसे पूँछते हैं तुम इत्र सा महकते कैसे हो ?

लोग हमसे पूँछते हैं तुम इत्र सा महकते कैसे हो ?
ज़माने को कैसे बताऊँ आप मेरी साँसों में बसते हो
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------

Thursday, 9 February 2017

जैसे कोई मुझको आवाज़ देता है

जैसे कोई मुझको आवाज़ देता है
मुड़ के देखूँ तो कोई नहीं होता है
सोचता हूँ मैं भी बेवफा हो जाऊँ
दिल को जाने कौन रोक लेता है
कई बार मैंने उजाले को पकड़ा
पर मुट्ठी खोलूँ तो जुगनू होता है
मुकेश खुद से ख़ुद के आँसू पोंछ
किसको कौन तसल्ली देता है ?

मुकेश इलाहाबादी ---------------

Wednesday, 8 February 2017

एक लघु कथा


एक लघु कथा
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इक
अदृश्य पुल के नीचे
इक खामोश दरिया बहता रहा
बहुत दिनों तक
आखिर
एक दिन,
नदी सूख गयी
पुल भी टूट गया

सुना है ! अब वहां रेत् ही रेत् है

मुकेश इलाहाबादी -------

Sunday, 5 February 2017

भले ही न दे मुझको कुछ भी मौला

भले ही न दे मुझको कुछ भी मौला
सबको दे ज़हान भर के खुशी मौला

रहे क्यूँ हर सिम्त अँधेरा ही अँधेरा
बिखरा दे तू हर तरफ चांदनी मौला

मुकेश, जलता हुआ जिस्म है मेरा
मुझको  दे बर्फ की इक नदी मौला

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Thursday, 2 February 2017

तमाम रस्ते थे मेरे ज़ानिब मगर

तमाम रस्ते थे मेरे ज़ानिब मगर
रुके थे राह में, तेरी खातिर  मगर

कि जाने कब ख्वाब में तू जा जाये
कुछ यही सोच, न सोये फिर मगर

जनता हूँ तेरी सोच में मैं हूँ ही नहीं
मेरी रग रग में शामिल है तू मगर

मुकेश इलाहाबादी ------------------

Wednesday, 1 February 2017

यूँ तो हज़ार ग़म हैं बताने को

अँधेरा तो तैयार बैठा है, मिटने को

अँधेरा तो तैयार बैठा है, मिटने को
कोई तैयार ही नहीं सूरज बनने को

तमाम दरिया बह उठेंगे सहारा में
इक हिमालय तो हो पिघलने को

ग़र चाहते हो तिशनगी मिट जाए
राज़ी तो हो, बादल बन, बरसने को

कबीर यूँ  ही नहीं बन जाता कोई ?
पहले हिम्मत तो हो घर फूंकने को

ज़माना इक दिन में बदल जायेगा
मुकेश लोग तो राज़ी हों बदलने को

मुकेश इलाहाबादी ------------------