Pages

Thursday, 9 February 2017

जैसे कोई मुझको आवाज़ देता है

जैसे कोई मुझको आवाज़ देता है
मुड़ के देखूँ तो कोई नहीं होता है
सोचता हूँ मैं भी बेवफा हो जाऊँ
दिल को जाने कौन रोक लेता है
कई बार मैंने उजाले को पकड़ा
पर मुट्ठी खोलूँ तो जुगनू होता है
मुकेश खुद से ख़ुद के आँसू पोंछ
किसको कौन तसल्ली देता है ?

मुकेश इलाहाबादी ---------------

No comments:

Post a Comment