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Monday, 30 April 2012

मेरी आखों में कोई समंदर नहीं

बैठे ठाले की तरंग ------------
 
मेरी आखों में कोई समंदर नहीं
फिर क्यूँ तेरी तस्वीर तैरती है ?
 
मुकेश इलाहाबादी ---------------

आखों में जो नीर है

बैठे ठाले की तरंग ----------------
आखों में जो  नीर  है
बहुत पुरानी  पीर है

घाव न ये भर पायेगा
दिल के अन्दर तीर है

कमजोरों पे है वार करें
कलयुग के सब वीर हैं

इल्म न इनको रत्ती भर
पर कहते हम 'कबीर' हैं

मत्ला-मक्ता, फर्क न जाने
पर सब कहते हम 'मीर' हैं

मुकेश इलाहाबादी -------------

ज़माना कहता है जिसे ज़ख्म, कहने दो

बैठे ठाले की तरंग ---------------------
 

ज़माना कहता है जिसे ज़ख्म, कहने दो
हम तो इसे मुहब्बत का ईनाम कहते हैं
 


मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Sunday, 29 April 2012

ज़िन्दगी से एक दिन हिसाब मांगूगा

बैठे ठाले की तरंग --------------

ज़िन्दगी से एक दिन हिसाब मांगूगा
मिली क्यूँ कैदे तन्हाई ज़वाब मांगूगा

छुपा कर ख़त जिमसे हमने दिया था
मिलोगी तो फिर से वो किताब मांगूगा

दिल तो हमने ही दिया था, दे ही दिया
सुबो शाम की फिर वो मुलाक़ात मांगूगा

परिंदों की उड़ाने और वो मुहब्बत का घर
माजी से वापस अपने सारे ख्वाब मांगूगा

शाम ऐ ज़िन्दगी में भूल जाऊं अपने ग़म
खुदा से ऐसा मैखाना ऐसी शराब मांगूगा

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Friday, 27 April 2012

ये शोखी - ये शरारत - ये अजब मस्ती








बैठे ठाले की तरंग ------------------------
ये शोखी - ये शरारत - ये अजब  मस्ती
खुदा भी बहक जाए फिर हम तो बन्दे हैं 

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

काली घटाओं से अक्सर जी घबराता है,









बैठे ठाले की तरंग ------------------------
काली  घटाओं  से  अक्सर जी घबराता है,
अपनी आबनूशी लटें समेट क्यूँ नहीं लेती ?
मुकेश इलाहाबादी -------------------------

Thursday, 26 April 2012

एक शब्द चित्र ------------------

एक शब्द चित्र ------------------
कालेज की लाईब्रेरी में
लड़का पढ़ रहा था
लडकी पढ़ रही थी
दोनों पास पास पढ़ रहे थे
लड़का इतहास की किताब में
लडकी का भूगोल पढ़ रहा था,
लडकी 'कीट्स' की कविता में
'प्रेम-तत्व' ढूंढ रही थी
लाईब्रेरियन इन आम से द्रश्यों से बेखबर
बहार के द्रश्यों में डूबा था
तभी एक और जोड़ा,
हाथों में हाथ लिए आया
वे किसी साहित्यिक प्रोजेक्ट के लिए
'प्रेम तत्व का सौंदर्य शास्त्र' मांग रहे थे
अब पहले वाला लड़का,
लडकी को पढ़ रहा था
और लडकी लड़के में प्रेम-तत्व ढूंढ रही थी
शायद दोनों एक दुसरे को पढ़ भी रहे थे
और एक दुसरे में कुछ ढूंढ रहे थे
दूसरा जोड़ा अपनी पसंद की किताब
 ले के जा चुका था -
और लाइब्रेरियन एक बार फिर से,
बाहर के आम से द्रश्यों में डूब चूका था

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

 

जब इश्क के फूल आखों में खिल गए

बैठे ठाले की तरंग -----------------------
जब इश्क के फूल आखों  में खिल गए
हया  कुछ  सुर्खियाँ  गालों  में मल गए
हमने जो पूछा उनसे खुश रहने का राज़
बस चुप्पियों के संग मुस्कुरा के रह गए
 
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Wednesday, 25 April 2012

मैने ज़िदगी से कुछ सवाल किये थे

बैठे ठाले की तरंग ----------------------

मैने ज़िदगी से कुछ सवाल किये थे
मुहब्बत के,
वफा के
ज़िंदगी के
लेकिन ....
ये सवाल आज भी अनउत्तरित हैं ....
उसी तरह,
पहले दिन की तरह

ये वो सवाल हैं,
जिनके जवाब हवाओं से पूछा
हवाऐं हंसी, जुल्फों से कुछ पल के लिये उलझी सुलझी
और फिर इठला कर, खलाओं मे न जाने कहां गुम हो गयी

ये वो सवाल हैं,
जिनके जवाब कभी महताब तो कभी आफताब
की रोशनी मे ढूंढता रहा,
लेकिन रोशनी भी कुछ पल के लिये
उसके चेहरे से टकरायी, मुस्कुराई
फिर उफूक के न जाने किस जंगल मे खो गयी

मैने ये सवाल उन लहरों से किया
जो ठांठे मारती थी ख्वाबों के समंदर मे
लेकिन ...
ये लहरें भी खो चुकी हैं,
अपनी अंगड़ाइयों के साथ  उन ऑखों मे
जहां इनका वजूद हरहराता था

इन सवालों के जवाब पूछता रहा,
बहुत अर्से तक अपने आपसे,
अपनी रुह से ....
मग़र वहां भी मिली
तारीक़ियां और वीरानियां जिनके पीछे आज भी
मौजूद हैं वे सवाल  उसी तरह
जिस तरह
पहले दिन थे
उसकी ऑखों मे
मेरी ऑखों मे
मेरे जेहन मे
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

कुछ देर को इधर भी गौर फरमाएं

बैठे ठाले की तरंग ------------------
 
कुछ देर को इधर भी गौर फरमाएं
हमारी तरफ भी मुखातिब हो जाएँ
गर्मियों के आग से जलते  दिनों में
थोड़ी सी छांह हमें  भी  बख्श जाएँ
 

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Tuesday, 24 April 2012

मलगजी शाम के साए में बैठ,तेरी

 बैठे ठाले की तरंग --------------
मलगजी शाम के साए में बैठ,तेरी
यादों की नई नज़्म गाना चाहता हूँ
रुसवाई,बेवफाई, और तन्हाएयों मे
दास्ताने ज़िन्दगी सुनाना चाहता हूँ

जब स्याही घुल रही हों फ़ज़ाओं मे
माजी की बेहोसी मे डूबना चाहता हूँ
खामुशी को चीरती हो पपीहे की  टेर
यादों की  नई नज़्म  गाना चाहता हूँ 

मुकेश इलाहाबादी ---------------------



समंदर में उतर के गौहर ढूँढने की बातें करो

बैठे ठाले की तरंग -------------------
समंदर में उतर के गौहर ढूँढने की बातें करो
यूँ न साहिल पे बैठ के सफीने की बातें करो
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

Monday, 23 April 2012

तल्खिये ज़िन्दगी के शिकार हैं हम

बैठे ठाले की तरंग --------------------
 
तल्खिये ज़िन्दगी  के  शिकार  हैं  हम
अजब अजब आदतों के बीमार हैं हम
हस्ती है अपनी ख़ाक भर की भी नहीं
फिर भी समझे  की  बरखुरदार हैं हम 
 
मुकेश इलाहाबादी ---------------------

मेरे घर दरो दीवार बोलती हैं

बैठे ठाले की तरंग ---------------
मेरे घर दरो दीवार बोलती हैं
रात दिन तन्हाइयां डोलती हैं

गुफ्तगूँ मैंने किसी से की नहीं
राज़ मेरा सिसकियाँ खोलती हैं

आवारगी मेरा शगल रहा नहीं
शहर में आखें कुछ खोजती हैं

पंख फडफडा के भी क्यूँ उड़ा नहीं
परिंदे को कोइ तो वज़ह रोकती है

रोशनी कभी मेरे घर आयी नहीं
मुझको मेरी परछइयां खोजती हैं

मुकेश इलाहाबादी ---------

Thursday, 19 April 2012

कभी अपनी महकती साँसों को पढ़ लिया होता








कभी  अपनी  महकती  साँसों  को  पढ़ लिया होता
कोई चुपके से हवाओं में 'मुहब्बत' लिख गया होगा










मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

सुना कर दास्ताँ आपको, वक़्त जाया किया जाए

बैठे ठाले की तरंग -------------------------------
 

सुना कर दास्ताँ आपको, वक़्त जाया किया जाए 
बेहतर है इससे अपनी तन्हाईयों में रो लिया जाए 
 


मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

Wednesday, 18 April 2012

ज़मीं पे कहे तो सितारे उगा दूं

बैठे ठाले की तरंग ----------------
 
ज़मीं पे कहे तो सितारे उगा दूं
आसमां पे भी मैबहारें खिला दूं

इक बार तू अपनी रज़ा तो बता
खुदा कसम मै सारा जहां हिला दूं

चाहूं तो पर्वत के सीने को चीर कर
सहरा में भी मै इक नदी निकाल दूं 

मुकेश इलाहाबादी ------------------



हो शराब कोइ भी, करती नहीं असर


बैठे ठाले की तरंग ----------------
हो शराब कोइ भी, करती नहीं असर
पी जाऊं क्या तुझे समंदर में घोल कर ?
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Tuesday, 17 April 2012

वफ़ा तुम्हारी फितरत नही

बैठे ठाले की तरंग -----------
 
वफ़ा तुम्हारी फितरत नही
बेवफाई हमारी आदत नही

हर बार तुमने रुसवा किया
फिर भी हमें शिकायत नही

लुट  गया  अपना  सारा जँहा
आदत में मिरे किफायत नही

क़द के मै तुम्हारे बराबर बनूँ
ऐसी तो अपनी लियाकत नही

दिल देके तुमसे कोई उम्मीद रखूँ
मुहब्बत मेरे लिए तिजारत नही

मुकेश इलाहाबादी -----------------






नकाब अपने चेहरे से यूँ न हटाया करो

बैठे ठाले की तरंग ----------------------
 
नकाब अपने चेहरे से यूँ न हटाया करो
ज़माने पे यूँ न बिजलियाँ गिराया करो
फैला है सूखी पत्तियों का सैलाब चहुँ ओर
मज़े के लिए चमन को यूँ न जलाया करो   
 


मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Monday, 16 April 2012

जिस्म से जिस्म की दूरियां कोई दूरियां नहीं

बैठे ठाले की तरंग --------------------------------------

जिस्म से जिस्म की दूरियां कोई दूरियां नहीं
दिल से दिल मिल  न पाए ऐसी कोई मजबूरियां नहीं

स्याह रातों में हम चलते रहे उम्र भर, 
सफ़र  में उजाला भर दे ऐसी कोई बिजलियाँ नहीं 

है बेहिस चांदनी फ़ैली हुई हर सिम्त,
ले सकूं लुत्फ़ चांदनी का ऐसी कोई खिड़कियाँ नहीं 

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------

मेरी आखों के चिलमन से पढ़ सको तो पढ़ लेना

बैठे ठाले की तरंग ------------------------------------
 

मेरी आखों के चिलमन से पढ़ सको तो पढ़ लेना , वरना 
हमने एहसासों को खामूशी के चिलमन में सजा रक्खा है 
 

मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------

मै सोख लूँगा, तुम्हारे सब आंसुओ को





बैठे ठाले की तरंग ----------------------
 
मै सोख लूँगा, तुम्हारे सब आंसुओ को
अपनी पलकों पे मुझे होंठ रखने तो दो

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Sunday, 15 April 2012

क़ैद ऐ तन्हाई से निकले तो

बैठे ठाले की तरंग ----------
क़ैद ऐ तन्हाई से निकले तो
ये समझे,कि आज़ाद हैं हम
हमें न थी ये खबर कि, अब
दो आखों में गिरफ्तार हैं हम 
मुकेश इलाहाबादी -----------

अनछुए गीतों की अनगूंज तुम्हारी बातों में

बैठे ठाले की तरंग -----------------------------

अनछुए गीतों की अनगूंज तुम्हारी बातों में
शुभ्रलहर गंगा की झलक तुम्हारी आखों में

श्यामल श्यामल कुंतल केश  जब  लहराओं
घनघोर घटा सी छा जाती हैं चार दिशाओं में

जब तुम पहनो चूड़ी,कंगना और लगाओ बेंदी
भरपूर नशा छा जाए  है  मेरी हर  शिराओं में

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

Thursday, 12 April 2012

दर्द हद से गुज़रता नहीं,

बैठे ठाले की तरंग -------------------

दर्द हद से गुज़रता नहीं,
तेरी याद भी शिद्दत से क्यूँ आती नहीं ?

हर रोज़ तो मरता हूँ,
ज़िन्दगी तुझे फिर मौत क्यूँ आती नहीं ?

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Wednesday, 11 April 2012

ये अदाएं, ये ज़लवे, और बातों की जादूगरी हमें कंहा आती थी

गुस्ताखी माफ़ !!!
 
ये अदाएं, ये ज़लवे, और बातों की जादूगरी हमें कंहा आती थी
ये तो आपकी सोहबत का असर है,हम कुछ दुनियादार हो गए 
 मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------

ज़ख्मो पे मेरे यूँ नमक छिड़कने की ज़रुरत क्या थी

छेड़ छाड़ ---------------------------------------
ज़ख्मो पे मेरे यूँ नमक छिड़कने की ज़रुरत क्या थी 
आपने छू दिया होता, हम खुद ब खुद तड़प गए होते

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

Tuesday, 10 April 2012

खुदा,कलम में कुछ ऐसी ताकत दे

बैठे ठाले की तरंग ------------------

खुदा,कलम में कुछ ऐसी ताकत दे
ज़िन्दगी की अपनी दास्ताँ लिख दूं

हर एक शख्स को सुनाने से अच्छा,
दास्ताने मुहब्बत का दीवान लिख दूं

इस तरह बार बार तू मुझे  न आजमा
आ, तेरे नाम अपना दिलोजान लिख दूं

मुकेश इलाहाबादी --------------------

Monday, 9 April 2012

हमारा नाम गुनाहगारों की फेहरिस्त में सही

बैठे ठाले की तरंग ------------------------------
हमारा नाम गुनाहगारों की फेहरिस्त में सही
इंसान बहुत बुरा हूँ ऐसा भी नहीं
 
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

ज़िन्दगी ने हमको सताया बहुत

बैठे ठाले की तरंग ----------------

ज़िन्दगी ने हमको सताया बहुत
मौत ने भी हमको रुलाया बहुत

जब तक गुलों के साए में रहा
गुलशन ने हमको हंसाया बहुत

मंजिल तो हमने अब तक न पायी
लेकिन सफ़र ने हमें थकाया बहुत

थके हुए थे बहुत, ताज़ा दम हो गए
चांदनी में शब् भर,हमने नहाया बहुत

नींद न आयी किसी करवट, रात भर
उनकी यादों ने हमको जगाया बहुत

मुकेश इलाहाबादी --------------------

Sunday, 8 April 2012

पूजना तुझे मंदिर में, तेरा नसीब था

बैठे ठाले की तरंग --------------------

पूजना तुझे मंदिर में, तेरा नसीब था
फिरते रहना  दरबदर,मेरा नसीब था

अब्र  का  टुकडा बिन  बरसे चला गया 
उम्रभर तीश्नालब रहना मेरा नसीब था 

चाँद बन तुम मिरे आँगन में उग आये,
पै,आफताब सा जलना मेरा नसीब था 

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Friday, 6 April 2012

बेहद तपते हुये दिन की समाप्ती के बाद


बेहद तपते हुये दिन की
समाप्ती के बाद
एक बेहद उदास व चिपचिपी शाम
अपने अकेलपन से से जूझते हुये
तुम्हारी यादों की ठन्डी फुहार में भीगते हुये
बैठे रहना अच्छा लग रहा है
सच न जाने कितने दिन व शाम
बिता सकता हूं इसी तरह बैठे रह कर
बिना इस बात की परवाह किये
कि तुम मुझे याद करती हो भी या नही।
याकि कभी अकेले में या कि उदास होने पर भी
तुम मुझे याद भी न करती हो।
याकि तुमने मुझसे कभी कुछ कहा न हो
और न ही मैने कहना चाह के भी न कहा हो।
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

Thursday, 5 April 2012

चिटकी छिटकी चांदनी, खिली खिली सी धूप

बैठे ठाले की तरंग ---------------------------

चिटकी छिटकी चांदनी, खिली खिली सी धूप
देख देख के दर्पण गोरी, खुद से जात लजाये

छैल छबीला साजन मोरा, बांकी उसकी चाल
जब जब मै पनघट जाऊं,  सीटी  देत  बजाये

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

Wednesday, 4 April 2012

चाँद सूरज मै उगाऊं अपने आँगन मे

बैठे ठाले की तरंग ----------------------

चाँद सूरज मै उगाऊं अपने आँगन मे
धुप  छांह  मै  खेलूँ  अपने  आँगन मे

जान कर छुप जाओ जब परदे की ओट
खेल खेल मे तुझको ढूँढू,अपने आँगन मे

तुलसी चौरे को दिया बाती औ देती अर्ध्य 
सुबहो शाम तुझको देखूं ,अपने आँगन मे

मुझे शाम ढले जब देर हो घर लौट आने मे
तुझे,बनावटी गुस्से मे देखूं अपने आँगन मे 

छुट्टियों का दिन हो, और हो सुनहरी शाम
तेरी स्याह जुल्फों से  खेलूँ अपने आँगन मे

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

चाँद की बांहों से निकल

शबनम,
चाँद की बांहों से निकल
खुश थी बहुत
मुस्कुराती, मासूम चांदी
सी हंसी,
ये देख सहा न गया आफताब से
उसने फैला दिए अपने
दहकते पंजे
मासूम शबनम पहले तो सुर्ख हुई
फिर दहकने लगी 
फिर खो गयी
हवा में
और चल पडी
किसी बादल  से मिलने
ताकि एक बार फिर
रात के आँचल में सज के 
चाँद की बांहों में मुस्कुराए
अपनी मासूम हंसी के साथ
आज सी सुहानी सुबह में

मुकेश इलाहाबादी 

चिरकाल तक तुम्हे याद करते हुए

चिरकाल तक तुम्हे याद करते हुए
बैठा रह सकता हूँ ,
चट्टान बन जाने की हद तक
और, यंहा तक की,
इंतज़ार के अनंत अनत युगों तक
 
धुप छाह अंधड़ पानी सहते हुए
बिखर सकता हूँ ,
बह जाने को नदी नाले से होते हुए
नीले समुद्र में रेत बन कर
ताकि कभी तुम उधर से गुजरो
तो तुम्हारे पांवों का स्पर्श पा सकूं
 
मुकेश इलाहाबादी -------------------

Tuesday, 3 April 2012

उमंग से भरे हुए आपके कूंचे तक तो आ जाते हैं,

बैठे ठाले की तरंग --------------------------------------
उमंग से भरे हुए आपके कूंचे तक तो आ जाते हैं,
फिर ना जाने क्यूँ कदम ठिठक ठिठक जाते हैं
सधे हुए एहसास, बहकती साँसों से बिखर जाते हैं
इज़हार ऐ तमन्ना को लरजते होंठ सिमट जाते हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

Sunday, 1 April 2012

हो गया कंठ मेरा भी नील प्यारे

बैठे ठाले की तरंग -------------------
हो  गया  कंठ  मेरा  भी  नील  प्यारे
जिंदगी में पीया है इतना गरल प्यारे

जिया है शिद्दत से मुहब्बत  को  हमने
होगी मुहब्बत तुम्हारे लिए शगल प्यारे

 

खुद का  वजूद  तक  ख़त्म  हो  जाता है
कि मुहब्बत को मत समझ सरल प्यारे
 
गर  जो  दास्ताने मुहब्बत अपनी सुनाऊँ
हो जायेगी तुम्हारी भी आखें सजल प्यारे

जम  गया  था  पत्थर  सा  दिल  मेरा
ऐ मुकेश, कर दिया मुहब्बत ने तरल प्यारे 

मुकेश इलाहाबादी --------------------------