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Wednesday, 25 April 2012

कुछ देर को इधर भी गौर फरमाएं

बैठे ठाले की तरंग ------------------
 
कुछ देर को इधर भी गौर फरमाएं
हमारी तरफ भी मुखातिब हो जाएँ
गर्मियों के आग से जलते  दिनों में
थोड़ी सी छांह हमें  भी  बख्श जाएँ
 

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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