रात
Sunday, 27 December 2020
ताने बाने पे
मै कोई सूरज थोड़े ही हूँ
मै
Comm
ये और बात जुबान नहीं रखता आईना
ये और बात जुबान नहीं रखता आईना
हमेशा सच को सच है दिखाता आईना
ऐसा भी नहीं कि कुछ नहीं बोलता है
सुनोगे तो बहुत कुछ बोलेगा आईना
बेवजह हाथ तुम्हारे ज़ख़्मी हो जाएंगे
मत छू मुझे मै हूँ चटका हुआ आईना
किसी और आईने की जरूरत ही नहीं
अपने दिल को ही बना लिया आईना
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
Friday, 18 December 2020
नदी को जानना आसान नहीं
नदी को जानना आसान नहीं
-----------------------
यूँ ही
एक दिन मैंने नदी से पूछा
"तुम कौन हो,,,,? "
नदी मुस्कुराई
और तंज़ से बोली
"सुनो कविवर,
नदी को सिर्फ
नदी के किनारे
किसी पेड़ सा खड़े हो कर
श्रद्धा से
आचमन भर कर लेने से
या फिर
नदी में पाँव पखार लेने भर से
नदी को न जान पाओगे
यहाँ तक कि
नदी को बिलकुल भी न जान पाओगे
नदी के जिस्म में
मगरमच्छ सा उम्र भर इठलाते रहने भर से
या कि
मुर्दा शब्दों से
कुछ मीठी - मीठी कवितायेँ लिख लेने भर से
नहीं जान पाओगे
तुम नदी को,
नदी को जानने के लिए
बर्फ का पहाड़ बन के
बूँद - बूँद पिघलना होगा
नदी में मिलना होगा
या फिर
बादल बन बरसनां होगा
या फिर
समंदर सा भव्य और
गहरा होना होगा
तो ही नदी
खुद - ब खुद
दौड़ती हुई तुम्हारी बाहों में
हरहरा कर समां जाएगी
हमेशा - हमेशा के लिए
और करती रहेगी केलि
हर पूनम की रात्रि
चाँद और सूरज की छाँव में
और शायद तब ही तुम
थोड़ा बहुत जान पाओ नदी को
क्यूँ की नदी को
जानना आसान नहीं है
नदी को जानने के लिए नदी ही बनना होगा "
यह कह कर ,
नदी इठलाती हुई आगे बढ़ गयी
और मै वहीं का वहीँ
ठिठका खड़ा हूँ
अपनी कलम और अल्फ़ाज़ों के साथ
मुकेश इलाहाबादी -----------------
Thursday, 17 December 2020
फुटकर नोट्स - सुमी के लिए
फुटकर नोट्स - सुमी के लिए
तुम याद आये
तुम
नदी बनाम समुद्र
नदी बनाम समुद्र
---------------------
सुमी, जानती हो ?
समंदर जितना ठहरा हुआ लगता है
उतना हमेशा से न था
पहले-पहल उसके अंदर बहुत हलचल हुआ करती थी
बहुत गरजता था
जब गरजता तो जलजला सा आ जाया करता था
मानो धरती आकाश एक हो जाया करते थे
धरती और समंदर के सभी जीव घबरा जाया करते थे
समंदर को अपनी भव्यता
और गर्जना पे नाज़ था
पर हुआ
यूँ कि
एक दिन उसे
यूँ ही
ख़याल आया कि
दुनिया में उसे छोड़
कोइ भी अकेला नहीं है
धरती के लिए - सूरज है
चाँद के पास - चॉँदनी है
चातक के पास - चकोर है
राग के पास - रागनी है
दिए के पास - रोशनी है
पर मेरे लिए ???
कोई नहीं है,
तब,
उसने ये बात देवताओं से कही
देवतोओं ने कहा
ऐसा नहीं है
तुम्हारे लिए 'नदी " है
तुम उसे पुकारो वो तुम तक
दौड़ी चली आयेगी
ये सुन समंदर खुश हुआ
उसने सूरज की किरणों की सतह पे
ख़त लिखा
बादल को डाकिया बनाया
अपना प्रणय निवेदन कहला भेजा
जिस वक़्त बादल डाकिया
नदी के पास पहुँचा
उस वक़्त अल्हड नदी
अपनी शोख अदाओं से
अपने पिता पर्वत की गोद में
खेल रही थी
उसके साथ
उसके साथी संगाती
शावक
हिरन
गिलहरी
पेड़ - पौधे तमाम गुल्म और लताएं
शोख़ और चंचल नदी के साथ किलोल कर रहे थे
किन्तु
बादल के द्वारा समंदर का प्रेम संदेसा पा
नदी विह्वल हो गयी
खुशी से उसकी आँखों से नीर बहने लगे
वो अपने प्रेमी समंदर से मिलने को
व्याकुल हो गयी
उसने अपने पिता पर्वत से विदा लिया
और,
चल पडी एक अंजाने और अबूझे पथ पर
और फिर वो तमाम शहर
जंगल और बस्तियों से गुज़रती हुई
सब से मिलती बतियाती सब को खुशी बाँटती हुई
खुद मैली होती हुई
तमाम दुःख सहती हुई
अपने प्रेमी के लिए बढ़ती गयी
बढ़ती गयी
और एक दिन वो अपने सजन
के पास पहुँच ही गयी और
हरहरा कर उसकी बाहों में खो गयी
अब समंदर भी बहुत खुश है
और शांत है
हाँ ये और बात
जब चाँद अपनी चाँदनी के साथ
किलोल करता है तब
समंदर भी अपनी लहरों को उछाल के
नदी को साथ होने की खबर करता है
तो समझी मेरी प्यारी पग्गू सुमी ??
समंदर कब से और क्यूँ इतना शांत रहता है ??
क्यूँ की उसके पास उसकीऔर नदी मिलने आती है
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
Tuesday, 15 December 2020
तुझसे इश्क़ ही तो किया था हमने
तुझसे इश्क़ ही तो किया था हमने
सहरा को भी हरा भरा कर सकता हूं
सहरा को भी हरा भरा कर सकता हूं
मैं बादल हूँ कभी भी बरस सकता हूं
अपने सारे असबाब बाँध रखे हैं मैंने
सफ़र पे कभी भी निकल सकता हूं
ज़रा आहिस्ता से छूना मेरे दिल को
कांच का हूँ कभी भी चटक सकता हूं
ओस बन के तेरे बदन को चूम लूँगा
सर्द कोहरा हूँ तुझसे लिपट सकता हूँ
अपने नाज़ुक हाथ हटा तू बदन से
पत्थर नहीं बर्फ हूँ पिघल सकता हूँ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Saturday, 12 December 2020
अपनी दोनों आँखे बंद कर लेती है
Co
ये कर आज फैसला तू
ये कर आज फैसला तू
Co
या तो दिल से साथ चलना चाहिए
या तो दिल से साथ चलना चाहिए
या साथ पसंद नहीं कहना चाहिए
मन में मलाल ले कर साथ रहो
बेहतर रास्ता बदल लेना चाहिए
जो दुःख सुख के साथी नहीं उन्हें
अपनी डायरी से हटा देना चाहिए
यादें अगर हर वक़्त दर्द देती है
बेहतर है उन्हें भुला देना चाहिए
कोइ प्यारा दोस्त रूठ गया है तो
उसे हर हाल मना में लेना चाहिए
मुकेश इलाहाबादी --------------
Tuesday, 8 December 2020
हो जाऊँ अब तुम ही बताओ कैसा
हो जाऊँ अब तुम ही बताओ कैसा
तुम जैसा कहो मै वैसा हो जाऊँ
मै तो ठहरा बन्दा सीधा सादा सा
क्या करूँ जो तुम जैसा हो जाऊँ
मुक्कू क्या करूँ खुद को बदलूँ या
मै भी खुदगर्ज़ औरों जैसा हो जाऊँ
मुकेश इलाहाबादी --------------
Saturday, 5 December 2020
परवरदिगार ने पहले- पहल जब क़ायनात बनाई तो
सुमी ,