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Sunday, 27 December 2020

ताने बाने पे

 रात

और दिन
के ताने बाने पे
कसता हूं
तुम्हारी यादों के
मजबूत धागे
और बुनता हूं
यादों की
एक उदास चादर
जिसपे काढता हूँ
तुम्हारी हंसी के बेलबूटे
जिसे ओढ़ काट दूँगा
दिसंबर जनवरी
की सर्द रातें
मुकेश इलाहाबादी,,,

मै कोई सूरज थोड़े ही हूँ

 मै

कोई सूरज थोड़े ही हूँ
कि दिन भर की थकन के बाद
रात मुझे ओढ़ के सो जाए
मुझे तो चमकना होता है
हर रोज़
हर रात
आकाश के उत्तरी ध्रुव पे
और निहारना होता है
अपनी धरती को
जो लाखों प्रकाशवर्ष की दूरी पे
नाच रही होती है
अपना सतरंगी आँचल ओढ़े
मस्ती से
आवारा चाँद के लिए
(सुमी से ,,,,,,,,,,,)
मुकेश इलाहाबादी -----------
Pankaj Singh, Sandhya Yadav and 26 others
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Comm

ये और बात जुबान नहीं रखता आईना

 ये और बात जुबान नहीं रखता आईना 

हमेशा सच को सच है दिखाता आईना 

ऐसा भी नहीं कि कुछ नहीं बोलता है 

सुनोगे तो बहुत कुछ बोलेगा आईना 

बेवजह हाथ तुम्हारे ज़ख़्मी हो जाएंगे 

मत छू मुझे मै हूँ चटका हुआ आईना 

किसी और आईने की जरूरत ही नहीं 

अपने दिल को ही बना लिया आईना 


मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Friday, 18 December 2020

नदी को जानना आसान नहीं

नदी को जानना आसान नहीं 

-----------------------


यूँ ही 

एक दिन मैंने नदी से पूछा 

"तुम कौन हो,,,,? "

नदी मुस्कुराई 

और तंज़ से बोली 

"सुनो कविवर, 

नदी को सिर्फ 

नदी के किनारे

किसी पेड़ सा खड़े हो कर 

श्रद्धा से 

आचमन भर कर लेने से 

या फिर 

नदी में पाँव पखार लेने भर से 

नदी को न जान पाओगे 

यहाँ तक कि 

नदी को बिलकुल भी न जान पाओगे 

नदी के जिस्म में 

मगरमच्छ सा उम्र भर इठलाते रहने भर से 

या कि 

मुर्दा शब्दों से 

कुछ मीठी - मीठी कवितायेँ लिख लेने भर से 

नहीं जान पाओगे 

तुम नदी को,


नदी को जानने के लिए 

बर्फ का पहाड़ बन के 

बूँद - बूँद पिघलना होगा 

नदी में मिलना होगा 

या फिर 

बादल बन बरसनां होगा 

या फिर 

समंदर सा भव्य और 

गहरा होना होगा 

तो ही नदी 

खुद - ब खुद 

दौड़ती हुई तुम्हारी बाहों में 

हरहरा कर समां जाएगी 

हमेशा - हमेशा के लिए 

और करती रहेगी केलि 

हर पूनम की रात्रि 

चाँद और सूरज की छाँव में 

और शायद तब ही तुम 

थोड़ा बहुत जान पाओ नदी को 

क्यूँ की नदी  को 

जानना आसान नहीं है 

नदी को जानने के लिए नदी ही बनना होगा "


यह कह कर ,

नदी इठलाती हुई आगे बढ़ गयी 

और मै वहीं का वहीँ 

ठिठका खड़ा हूँ 

अपनी कलम और अल्फ़ाज़ों के साथ 


मुकेश इलाहाबादी -----------------


Thursday, 17 December 2020

फुटकर नोट्स - सुमी के लिए

 फुटकर नोट्स - सुमी के लिए

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एक
---
मेरे,
सारे रंगहीन ख़्वाब
तुम्हारी आँखों के
प्रिज़्म से गुजरते ही
सतरंगी हो गए
दो
---
तुम्हारी
आँखों में पानी
और मेरे
पास शब्दों की माटी थी
जो आपस में गूँथ के
नज़्मों की शक्ल में ढलते जा रहे हैं
तीन
-----
बस
एक बार अपने होठो से नहीं
आँखों से कह दो 'न "
फिर मै लौट जाऊँगा
अपने मौन के कोटर में
न लौटने के लिए
मुकेश इलाहाबादी --

तुम याद आये

 तुम

बारिश मे याद आये
भीग जाने के लिए
पोर- पोर
पुलकित होने को
सर्वांग
तुम सर्द रातों मे
याद आये
मद्धम - मद्धम जलते
अलाव की
मीठी मीठी आंच मे तापने की
तुम बहतु
याद आये पतझड़ में
बसंत के इंतज़ार में
वर्ष के किस मौसम में
याद आया मै
पूछता हूँ तुमसे आज
मुकेश इलाहाबादी ----

नदी बनाम समुद्र

 नदी बनाम समुद्र 

---------------------

सुमी, जानती हो ?

समंदर जितना ठहरा हुआ लगता है 

उतना हमेशा से न था 

पहले-पहल उसके अंदर बहुत हलचल हुआ करती थी 

बहुत गरजता था 

जब गरजता तो जलजला सा आ जाया  करता था

मानो धरती आकाश एक हो जाया करते थे 

धरती और समंदर के सभी जीव घबरा जाया करते थे  

समंदर को अपनी भव्यता 

और गर्जना पे नाज़ था 

पर हुआ 

यूँ कि 

एक दिन उसे 

यूँ ही 

ख़याल आया कि 

दुनिया में उसे छोड़

कोइ भी अकेला नहीं है 


धरती के लिए - सूरज है 

चाँद के पास - चॉँदनी है 

चातक के पास - चकोर है 

राग के पास - रागनी है 

दिए के पास - रोशनी है 

पर मेरे लिए ???

कोई नहीं है,

तब, 

उसने ये बात देवताओं से कही 

देवतोओं ने कहा 

ऐसा नहीं है 

तुम्हारे लिए 'नदी " है 

तुम उसे पुकारो वो तुम तक 

दौड़ी चली आयेगी 


ये सुन समंदर खुश हुआ 


उसने सूरज की किरणों की सतह पे 

ख़त  लिखा 

बादल को डाकिया बनाया 

अपना प्रणय निवेदन कहला भेजा 


जिस वक़्त बादल डाकिया 

नदी के पास पहुँचा 

उस वक़्त अल्हड नदी 

अपनी शोख अदाओं से 

अपने पिता पर्वत की गोद में 

खेल रही थी 

उसके साथ 

उसके साथी संगाती 

शावक 

हिरन 

गिलहरी 

पेड़ - पौधे तमाम गुल्म और लताएं 

शोख़ और चंचल नदी के साथ किलोल कर रहे थे 

किन्तु 

बादल के द्वारा समंदर का प्रेम संदेसा पा 

नदी विह्वल हो गयी 

खुशी से उसकी आँखों से नीर बहने लगे 

वो अपने प्रेमी समंदर से मिलने को 

व्याकुल हो गयी 

उसने अपने पिता पर्वत से विदा लिया 

और,

चल पडी एक अंजाने और अबूझे पथ पर 

और फिर वो तमाम शहर 

जंगल और बस्तियों से गुज़रती हुई 

सब से मिलती बतियाती सब को खुशी बाँटती हुई 

खुद मैली होती हुई 

तमाम दुःख सहती हुई 

अपने प्रेमी के लिए बढ़ती गयी 

बढ़ती गयी 

और एक दिन वो अपने सजन 

के पास पहुँच ही गयी और 

हरहरा कर उसकी बाहों में खो गयी 

अब समंदर भी बहुत खुश है 

और शांत है 

हाँ ये और बात 

जब चाँद अपनी चाँदनी  के साथ 

किलोल करता है तब 

समंदर भी अपनी लहरों को उछाल के 

नदी को साथ होने की खबर करता है 


तो समझी मेरी प्यारी पग्गू सुमी ??

समंदर कब से और क्यूँ इतना शांत रहता है ??

क्यूँ की उसके पास उसकीऔर  नदी मिलने आती है 



मुकेश इलाहाबादी -------------------------------










Tuesday, 15 December 2020

तुझसे इश्क़ ही तो किया था हमने

 तुझसे इश्क़ ही तो किया था हमने

तो क्या ये गुनाह कर दिया हमने
फकत चंद मुलाकातों को बचा कर
ज़िंदगी सब कुछ भुला दिया हमने
बाजुओं पे अपनी कर के भरोसा
लकीरें हाथों की मिटा दिया हमने
वो चाहता था मुझे ग़मज़दा देखे
ज़िंदगी हंस के बिता दिया हमने
सिर्फ तेरे नाम का दिया है रौशन
रात सारे चराग़ बुझा दिया हमने
मुकेश इलाहाबादी -----------

सहरा को भी हरा भरा कर सकता हूं

 सहरा को भी हरा भरा कर सकता हूं

मैं बादल हूँ कभी भी बरस सकता हूं


अपने सारे असबाब बाँध रखे हैं मैंने

सफ़र पे कभी भी निकल सकता हूं


ज़रा आहिस्ता से छूना मेरे दिल को

कांच का हूँ कभी भी चटक सकता हूं


ओस बन के तेरे बदन को चूम लूँगा 

सर्द कोहरा हूँ तुझसे लिपट सकता हूँ 


अपने नाज़ुक हाथ हटा तू बदन से  

पत्थर नहीं बर्फ हूँ पिघल सकता हूँ 


मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


Saturday, 12 December 2020

अपनी दोनों आँखे बंद कर लेती है

अपनी दोनों आँखे बंद कर लेती है
मेरे सीने पे अपना सर रख लेती है
बहुत बार तो जब लाड में होती है
वो झूठ-मूठ का गुस्सा कर लेती है
अमूमन उससे मै दर्द छुपा लेता हूँ
पर जाने कैसे वो आँखे पढ़ लेती है
कोई सा तो जादू जाने है वो तभी
प्यार की झप्पी से दुःख हर लेती है
वो ईश्क़ की बातें करना जाने न पर
अक्सरहां मुझे बाँहों में भर लेती है
मुकेश इलाहाबादी --

Co

ये कर आज फैसला तू

 ये कर आज फैसला तू

तू मेरा है या ग़ैर का तू
अगर बेवफा नहीं है तो
आँख से आँख मिला तू
रिश्ता नहीं रखना है तो
डायरी से नाम मिटा तू
गया वक़्त हूँ न लौटूँगा
मत अब मुझको बुला तू
मुक्कू गर कोइ गिला है
तू बेशक मुझको बता तू
मुकेश इलाहाबादी --
Ranjana Shukla, आराधना द्विवेदी and 19 others
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Co

या तो दिल से साथ चलना चाहिए

 या तो दिल से साथ चलना चाहिए 

या साथ पसंद नहीं कहना चाहिए 


मन में मलाल ले कर साथ रहो  

बेहतर रास्ता बदल लेना चाहिए 


जो दुःख सुख के साथी नहीं उन्हें   

अपनी डायरी से हटा देना चाहिए 


यादें अगर हर वक़्त दर्द देती है  

बेहतर है उन्हें भुला देना चाहिए 


कोइ प्यारा दोस्त रूठ गया है तो 

उसे हर हाल मना में लेना चाहिए 


मुकेश इलाहाबादी --------------






Tuesday, 8 December 2020

हो जाऊँ अब तुम ही बताओ कैसा

हो जाऊँ अब तुम ही बताओ कैसा 

तुम जैसा कहो  मै वैसा हो जाऊँ 


मै तो ठहरा बन्दा सीधा सादा सा 

क्या करूँ जो तुम जैसा हो जाऊँ 


मुक्कू क्या करूँ खुद को बदलूँ या 

मै भी खुदगर्ज़ औरों जैसा हो जाऊँ 


मुकेश इलाहाबादी --------------


Saturday, 5 December 2020

परवरदिगार ने पहले- पहल जब क़ायनात बनाई तो

 सुमी ,

परवरदिगार ने पहले- पहल जब
क़ायनात बनाई तो
उसने ज़मी के लिए सूरज
और
फलक के लिए चाँद बनाया
ताकि दोनों जगह रोशनी हो सके
चाँद पा के सितारे बहुत खुश थे
वे अक्सर ज़मी से कहते
तुम्हारे पास रोशनी के लिये तो
सूरज है
दिन भर जो जलता ही रहता है
और वो देखने में तो उजला लगता लगा है
पर पास जाओ तो
उसका रंग स्याह है
ये सुन ज़मी वाले बेइंतहां
उदास हो जाते
वे सितारों से कुछ न कह पाते
एक दिन जब फिर
सितारों ने
उलाहना दिया सूरज का
तो ज़मी वाले परवरदिगार के पास
अपनी ये दास्ताँ ले के गए
और ,,,,
तब खुदा ने ज़मी के लिए भी
एक चाँद मुक़र्रर किया
और कहा " ऐ ज़मी वालों
मै तुम लोगों के लिए जो चाँद दूंगा
वो न केवल बेहद खूबसूरत होगा
उसके चेहरे पे कोइ दाग़ न होगा
उसकी रोशनी कभी कम या ज़्यादा भी न होगी
अरु तो और उसमे खुशबू भी होगी "
ये सुन ज़मी वाले बेहद खुश हुए और वे
खुशी - खुशी ज़मी पे लौट आए
जानती हो बाद उसके परवरदिगार ने जो
चाँद भेजा
वो चाँद तुम हो
तुम हो
तुम हो
तुम हो सुमी
और जानती हो सुमी ??
दिन से ही सितारे बेहद उदास रहने लगे
उनकी रोशनी भी बेहद कम हो गयी
और चाँद का भी " मुँह टेड़ा हो गया"
वरना वो तो पहले हमेशा पूनम के चाँद सा गोल और
चमकीला होता था
तब से ज़मी के लोग बेहद खुश है
क्यूँ की उसके चाँद में रजनीगंधा सी खुशबू भी है
फलक के चाँद सी ख़ूबसूरती भी है
तो
ऐ मेरी चाँद
आज की शब् तो छत पे आ जाओ
ताकि हमारी बिन तारीख की ईद हो जाए
क्यूँ सुन रही हो न
मेरी चाँद
मेरी सुमी ??????
मुकेश इलाहाबादी --------------