अपनी दोनों आँखे बंद कर लेती है
मेरे सीने पे अपना सर रख लेती है
बहुत बार तो जब लाड में होती है
वो झूठ-मूठ का गुस्सा कर लेती है
अमूमन उससे मै दर्द छुपा लेता हूँ
पर जाने कैसे वो आँखे पढ़ लेती है
कोई सा तो जादू जाने है वो तभी
प्यार की झप्पी से दुःख हर लेती है
वो ईश्क़ की बातें करना जाने न पर
अक्सरहां मुझे बाँहों में भर लेती है
मुकेश इलाहाबादी --
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