गम अपना खुद से उठाना सीख लिया
खुद से खुद को समझाना सीख लिया
कोई माझी कोई कश्ती पार नही जाती
खुद से खुद को पुल बनाना सीख लिया
सलीका पसंद लोग खुल के नही हंसते
लिहाजा हमने भी मुस्कुराना सीख लिया
बुतों के शहर मे शाइरी करने के लिये
खुद को भी पत्थर बनाना सीख लिया
खुद को चर्चा मे रखने के लिये मुकेष
खुद को मसखरा कहलाना सीख लिया
मुकेश इलाहाबादी ....................