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Sunday, 28 October 2018

दीवारें
सिर्फ दीवारें नहीं
सोख्ता भी होती हैं

तभी तो
जहां दीवारों की बाहरी सतह, हमारे लिए दिन रात सोखती हैं
धूप, हवा, पानी और तूफान

वहीं दीवारों की अंदरूनी सतह सोख लेती हैं
आँखो की नमी
घुटी घुटी सिसकियाँ
माँ की गठिया, बाप की खांसी
पत्नी की चुप्पी
बच्चों की अधूरी फरमाइशें
खुद की मज़बूरियाँ

यही सोख्ता दीवारें
थके बदन को
टेक लगाने के लिए
सहारा भी बन जाती हैं
लिहाज़ा दीवारें हमारे
बहुत काम की होती हैं

सिवाए दो दिलों के बीच न खड़ी हो

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,

Saturday, 27 October 2018

तुम,
मेरे,
गिफ्ट लौटा सकती हो
ख़त जला सकती हो
चैट बॉक्स व मेसेंजेर से
सारे मेसेज डिलीट कर सकती हो
पर,
उन उन यादों का क्या करोगे?
जो लिपटी रहेंगी
तुम्हारे इर्द गिर्द
धूप, हवा और पानी की तरह,
या फिर
तुम्हारे सीने मे आती  जाती रहेंगी
श्वास की  तरह

मुकेश इलाहाबादी.......

गिर गए हो तो क्या फिर से उठो हुज़ूर

गिर गए हो तो क्या फिर से उठो हुज़ूर
बस किसी की आँखो से न गिरो हुज़ूर

न जाने कौन कब कहां काम मे आए
सब से मुहब्बत से मिला करो हुज़ूर

जिस्‍म तो इक दिन माटी हो जाना है
खूबसूरती पे इतना गुरूर न करो हुज़ूर

हर वक़्त पैसा पैसा भजा करो मगर
दिन मे दो पल राम को भी भजो हुज़ूर

गैरों से तो आप मिलते हो रोज़ रोज़
कभी तो आके हमसे भी मिलो हुज़ूर

मुकेश इलाहाबादी......

तेरा , नाम नही लिखा

तेरा ,
नाम नही लिखा है
मेरी हथेली पे,
फिर भी देख लेता हूँ
तेरी फोटो
चुपके चुपके एफ. बी पे

रात
बीत जाती है
करवटों के बीच
दिन गुज़र जाता है
रोते हुए
अपनी बदऩसीबी पे

मुकेश इलाहाबादी......

Monday, 15 October 2018

वो भी न जल न जाए इतनी दहशत तो होगी

वो भी न जल न जाए इतनी दहशत तो होगी
अगर ज़िगर जल रहा है थोड़ी लपट तो होगी

कोई है उसके लिए बेचैन रहता है शामो सहर
माना कि उसे बहुत नही थोड़ी ख़बर तो होगी

कभी दिल दरिया कभी दिल झरना सा बहे है
आब सा जब कुछ बहे है, कुछ लहर तो होगी

मुकेश इलाहाबादी............

पानी मे थोड़ा गुलाल मिला दूँ क्या


पानी मे थोड़ा गुलाल मिला दूँ क्या
उंगली से तेरे गालों को छू लूँ क्या ?

आरज़ू है तुझे बेहद करीब से देखूं
किसी रोज़  आ के मै मिल लूँ क्या

तेरा बदन महके ज्यूँ संदल  संदल
आ के तेरी साँसों को ज़रा सूँघू क्या

तेरी हँसी है उजली उझली चादर
हल्की हल्की सर्दी है,ओढ़ूँ क्या ?

ये वाकिंग शू और ये वाकिंग ड्रेस
तुझ संग संग मै भी टहलूं क्या ?

मुकेश इलाहाबादी......

Sunday, 14 October 2018

फूल की तरह कभी खिला ही नही

फूल की तरह कभी खिला ही नही
किसी की साँसों में मै बसा ही नही

भला कोई मेरा कैसे हो गया होता
बज़्‍म में मै किसी से मिला ही नही

मंज़िल तक भला मै पहुंचता कैसे
घर से मैंने क़दम निकला ही नहीं

पलट के कोई कैसे मुझ तक आता
किसी को दिल से पुकारा ही नही

मेरी बातों का कोई क्या ज़वाब देता
जब मैंने किसी से कुछ पूछा ही नही

मुकेश इलाहाबादी -----------------

कैलेंडर से वे सारी तरीखें मिटा डाली

एक
दिन मैंने कैलेंडर से
वे सारी तरीखें मिटा डाली
जिसमे जिसमे तुम थीं
अब मेरी दीवार बिना कैलेंडर के है
मैंने,
चाहा अपने ज़ेहन से
तुम्हारी सारी खुशबू विदा कर दूँ
मेरे पास अब कोई सुगंध नही है
ऐसे ही एक दिन
मैंने चाहा
'मै' हो जाऊँ तुम्हारे बिन
'मैंने' पाया 'मै' तो कंही भी नही हूँ...... तुम्हारे बिन
सिवाय इक शून्य के
मुकेश इलाहाबादी........

उसी दर पे खड़ा हूँ. जहाँ तुम छोड़ के गए थे

उसी दर पे खड़ा हूँ. जहाँ तुम छोड़ के गए थे
लौट के यहीं आओगे,  हमसे कह के गए थे

ये वही राह हैं वही गुलशन है वही दरख्त है
जिनकी छाह मे तुम वायदा कर के गए थे

तमाम रास्ते चुप हैं  मेरी हंसरते सूबुकती हैं
ये वही मोड़ है जहां से, तुम मुड के गए थे

मुकेश इलाहाबादी........

Saturday, 13 October 2018

जिधर भी गया उधर धूप ही धूप का मंज़र मिला

जिधर भी गया उधर धूप ही धूप का मंज़र मिला
दोस्तों के हाथों में अपने ही खिलाफ खंज़र मिला

ढूढंते रहे उम्र भर मंदिर मंदिर, मस्जिद मस्जिद
चुप हो के एक दिन मै बैठा वो मेरे ही अंदर मिला

मुकेश, जिस दिल को उम्र भर मैंने सहरा समझा
उसी के सीने में मुझे हरहराता हुआ समंदर मिला

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------

Friday, 12 October 2018

पहले शहर में मेरे बारे में हर इक को बताया गया

पहले शहर में मेरे बारे में हर इक को बताया गया
फिर इश्तेहार की तरह दीवारों में चिपकाया गया

मेरा गुनाह, हाकिम के खिलाफ हाथ उठाना था
लिहाज़ा झूठे आरोप लगा, सरे आम पीटा गया

जब - जब इश्क़ लिखा सबने पढ़ा सबने सराहा 
इश्क़ किया तो चटखारे ले ले के सुनाया गया

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

Sunday, 7 October 2018

डाल से टूटकर मै किधर जाऊंगा

डाल से टूटकर मै किधर जाऊंगा
कुछ देर उड़ूंगा फिर गिर जाऊँगा

मेरे हिस्से मे कोई आफताब नही
सिर्फ अंधेरे मिलेंगे जिधर जाऊँगा

प्यास से मेरा गला खुश्क हो रहा है
जिधर आब मिलेगा उधर जाऊँगा

तुझे क्या मालूम तू मेरे लिए क्या है
तू मुझे न मिली तो मै मर जाऊँगा

मुकेश इलाहाबादी.................

प्यास को भी अलविदा कह दिया

जिस,
दिन से नदी से
किनारा कर लिया
उस दिन से
प्यास को भी अलविदा कह दिया

अब,
तुम्हारे लौट आने से क्या होगा?
ज़िंदगी ने ही जब मुझे
अलविदा कह दिया

अब ,
तुम्हारे मरहम लगाने से
क्या होगा?
जो दर्द सहना था, वो तो सह लिया

मुकेश इलाहाबादी --------------------

Wednesday, 3 October 2018

आदतन वो हँस देता है, रश्मन मै भी मुस्कुरा देता हूँ

आदतन वो हँस देता है, रश्मन मै भी मुस्कुरा देता हूँ
न वो मुझसे कुछ बोलता है,न मै उससे कुछ कहता हूँ

सिर्फ  दुआ सलाम और हैलो- हाय का रिश्ता है उससे
हलाकि इक अर्से से मै उसके घर के करीब ही रहता हूँ

कई बार तय ये हुआ कभी तफ्सील से मुलाकात करेंगे
कभी तो उसके पास वक़्त नहीं, कभी मै व्यस्त रहता हूँ

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------


Tuesday, 2 October 2018

हँसता हुआ देख खिलखिलाता हुआ देख

हँसता हुआ देख खिलखिलाता हुआ देख
अंधेरे को बेहियाई से मुस्कुराता हुआ देख

उजले - उजले लिबसों में दिल काला काला
पद पैसे के लिए गला काट प्रतियोगिता देख

मुकेश सत्य अहिंसा की राह में जो जो चला
कभी सूली चढ़ता कभी गोली खाता हुआ देख

मुकेश इलाहाबादी............

ख़ुदा से ज़िंदगी की और दुआ मांगी नही जाती

ख़ुदा से ज़िंदगी की और दुआ मांगी नही जाती
तुझसे जुदाई की ये सज़ा और सही नही जाती

कई बार सोचा किसी को सुना दूँ पर जाने क्यूँ
दर्दों ग़म की ये दास्तां मुझसे कही नही जाती

हंसने मुस्कुराने के तमाम जतन करे फिर भी
मुकेश जाने क्यूँ चेहरे से ये उदासी नहीं जाती

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,