ख़ुदा से ज़िंदगी की और दुआ मांगी नही जाती
तुझसे जुदाई की ये सज़ा और सही नही जाती
कई बार सोचा किसी को सुना दूँ पर जाने क्यूँ
दर्दों ग़म की ये दास्तां मुझसे कही नही जाती
हंसने मुस्कुराने के तमाम जतन करे फिर भी
मुकेश जाने क्यूँ चेहरे से ये उदासी नहीं जाती
मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तुझसे जुदाई की ये सज़ा और सही नही जाती
कई बार सोचा किसी को सुना दूँ पर जाने क्यूँ
दर्दों ग़म की ये दास्तां मुझसे कही नही जाती
हंसने मुस्कुराने के तमाम जतन करे फिर भी
मुकेश जाने क्यूँ चेहरे से ये उदासी नहीं जाती
मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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