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Thursday, 30 November 2017

हमारे पास सिर्फ एक ही रास्ता था,

हमारे पास सिर्फ एक ही रास्ता था,
शहर छोड़ना या तुझे भूल जाना था

सफर में तनहा खुश था, पूछा चूँकि
साथ साथ चलोगे तुम्ही ने कहा था

राह के पत्थरों से पेड़ों से पूछ लेना
बहुत देर तक तुम्हारी राह तका था

मुहब्बत की राह में दर दर पे रोड़े हैं
कभी, ईश्क़ की किताब  में  पढ़ा था

दरिया ऐ ग़म बहता है मेरे सीने में
मत पूछ मै कब तक बहता रहा था 

गर कभी याद करोगे तो कहोगे कि
कुछ भी हो, मुकेश इक दीवाना था

मुकेश इलाहाबादी ------------------

हमारे पास सिर्फ एक ही रास्ता था,

हमारे पास सिर्फ एक ही रास्ता था,
शहर छोड़ना या तुझे भूल जाना था

सफर में तनहा खुश था, पूछा चूँकि
साथ साथ चलोगे तुम्ही ने कहा था

राह के पत्थरों से पेड़ों से पूछ लेना
बहुत देर तक तुम्हारी राह तका था

मुहब्बत की राह में दर दर पे रोड़े हैं
कभी, ईश्क़ की किताब  में  पढ़ा था

गर कभी याद करोगे तो कहोगे कि
कुछ भी हो, मुकेश इक दीवाना था

मुकेश इलाहाबादी ------------------

Wednesday, 29 November 2017

याद आये है तेरा फूलों सा महकता

याद आये है तेरा फूलों सा महकना
स्याह  रातों में चाँदनी सा चमकना

हाथ थामे थामे चले जाना दूर तक
तेरा रह-२,भरी गागर सा छलकना

माथे पे बल  खाती वो बाँकी ज़ुल्फ़ें
जिन्हे अदा से संवारना फिर हँसना

कभी खिलखिलाना कभी रूठ जाना
कभी कभी तेरा खुद,मुझसे लिपटना

समंदर किनारे दूर तक दौड़ते जाना
फिर वो तेरा मेरे इंतज़ार में  ठहरना

मुकेश इलाहाबादी ---------------

दिल के तम्बूरे में सिर्फ तेरा ही राग बजता है

दिल के तम्बूरे में सिर्फ तेरा ही राग बजता है
वरना तो ये तम्बूरा हरदम गुप् - चुप रहता है

दुनिया  के झमेले से जो कभी फुर्सत मिले तो
मुक्कु अपनी धड़कनो को सुन्ना क्या कहता है

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

यंहा अँधेरा ही अँधेरा होता है

यंहा अँधेरा ही अँधेरा होता है
तेरे आने से  उजाला होता है

ग़र रातों में बेनक़ाब निकले,
महताब  का  अंदेसा होता है

तू आ जाये  तो सावन भादों
वर्ना बारों मास सूखा होता है

ये  बड़ी  मतलबी  दुनिया है
यंहा कौन किसी का होता है


मुकेश इलाहाबादी ----------

Tuesday, 28 November 2017

हज़ारों इम्तहाँ ले चुका ज़माना

हज़ारों इम्तहाँ ले चुका ज़माना
हमें किसी भी क़ाबिल न माना

सैलाब बन के क़हर ढाऊंगा, ग़र
छलक गया मेरे सब्र का पैमाना


मुकेश इलाहाबादी ---------------

Thursday, 23 November 2017

तुम मुझे सुनोगे ज़रूर

मुझे मालूम है
तुम मुझे सुनोगे ज़रूर
मगर तब ! जब मेरे लफ्ज़ खामोश हो जाएंगे

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

तेरे बारे में सोचते सोचते

तेरे बारे में सोचते सोचते
फिर सो जाऊँगा रोते रोते

उठता नहीं  बोझ फिर भी 
चलूँगा तेरी यादें ढोते ढोते

मुकेश इलाहाबादी -------

Wednesday, 22 November 2017


बाद उसके मर भी जाऊँ ग़म ना  है
तुझको पास से देखूँ यही तमन्ना है

तू दूर है मुझसे नाराज़ भी, ग़म नहीं
इस बात की तसल्ली है तू अपना है

मुकेश इलाहाबादी --------------------

घरवाली का पारा हाई है

घरवाली का पारा हाई है
कामवाली नहीं आयी है

कभी बच्चे कभी बर्तन
सब की शामत आई है

रूखा - सूखा जो  मिले
खा लेने में ही भलाई है 

पड़ोसन को देखा लिया 
तब से पत्नी भिन्नाई है

सच तो यही पत्नी मिर्ची
पड़ोसन ताज़ी मिठाई है

मुकेश इलाहाबादी ----

ख़ज़ाने सारे लुटा दूँगा

ख़ज़ाने सारे लुटा दूँगा
तेरी  यादें  मिटा  दूंगा

अँधेरे  रास  आने लगे
सभी चराग़ बुझा दूंगा

अपने माज़ी के पुलिंदे
मै दरिया में बहा दूँगा

तनहाई  के  ताबूत  में
खुद को ही दफ़ना दूंगा

ये ग़ज़लें  नहीं लोरी हैं
मुकेश को मै सुला दूँगा

मुकेश इलाहाबादी --------

Tuesday, 21 November 2017

सब से मिला जुला कर

सब से मिला जुला कर
रिश्ते  भी निभाया कर

अपना  दुःख -दर्द सुना
औरों की भी सुना कर

इतना  उदास मत  रह
थोड़ा हँसा हँसाया कर

दर्द हद से बढ़ जाए तो
ग़ज़लें नज़्मे कहा कर

मुक्कु अच्छा इंसान है
उससे मिला जुला कर

मुकेश इलाहाबादी -----

Friday, 17 November 2017

मै गुल नहीं हूँ खिल जाऊँ तेरे सहन में


मै गुल नहीं हूँ खिल जाऊँ तेरे सहन में
बादल भी नहीं बरस जाऊँ तेरी छत पे
फक्त अलफ़ाज़ हैं, एहसास हैं, कहो तो
कुछ ग़ज़लें लिख दूँ  तुझे विरासत में

मुकेश इलाहाबादी --------------------

Wednesday, 15 November 2017

जाने किस मिट्टी के बने हो मुकेश बाबू

जाने किस मिट्टी के बने हो मुकेश बाबू
साँझ के चराग़ सा जले हो मुकेश बाबू

यंहा तो लोग छाँह में भी छतरी ढूंढते हैं
तुम पाँव नंगे धूप में चले हो मुकेश बाबू 

गवाह है तुम्हारे बदन के ज़ख्म ज़ख्म
आँधी - तूफ़ान में जिए हो मुकेश बाबू

लोग, एक बार में टूट जाते हैं, तुम तो 
उम्र भर हादसों में जिए हो मुकेश बाबू

लिबास की तरह लोग बदलते हों दोस्त
कैसे एक के हो कर के रहे हो मुकेश बाबू

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

ये और बात ज़माने के लिए अच्छा हूँ

ये और बात ज़माने के लिए अच्छा हूँ
तुम्हारे लिए तो, आवारा हूँ ,लफंगा हूँ

कुछ ग़ज़लें कुछ तुम्हारे नाम के ख़त
सब छोड़ चला जाऊँगा, सच कहता हूँ

यूँ तो शहर में बहुत हैं चाहने वाले मेरे
फिर भी जाने क्यूँ तनहाई में रहता हूँ

खल्वत में अक्सर ये सोचा करता हूँ
मै तुझसे बिछड़ कर भी, क्यूँ ज़िंदा हूँ

मुकेश  इलाहाबादी ------------------

Monday, 13 November 2017

तुम्हारे लिए इतनी बेताबी क्यूँ रहती है ?

 तुम्हारे लिए इतनी बेताबी क्यूँ रहती है ?
 तुमसे मिलनी की बेकरारी क्यूँ रहती है ?
 गर तू मेरा कोई नहीं और तू मेरी नहीं,
 फिर एक दूजे को इंतज़ारी क्यूँ रहती है ?
बातें करती हो तो दिल खुश खुश रहता है
मुकेश वर्ना सारे दिन उदासी क्यूँ रहती है?
 
 मुकेश इलाहाबादी --------------------------

टप्पा खाता रहा उसके हाथ आता रहा


 टप्पा खाता रहा उसके हाथ आता रहा
 हर बार वह मुझे गेंद सा उछालता रहा

 टूटते हुए काँच की खनक उसे पसंद थी
 मेरे दिल के टुकड़े कर कर फेंकता रहा

उसकी हर अदा पसंद आयी ये और बात
दिले खिलौना वो तोड़ता, मै जोड़ता रहा

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

Sunday, 12 November 2017

सूरज है तो रात के घर से निकल

सूरज है तो रात के घर से निकल
गर तू चाँद है तो बादल से निकल

बार बार मिन्नत न करा ऐ दोस्त
अब तो ,लाज के घूंघट से निकल

अपनी तस्वीर मेरी आँखों में देख
कुछ देर काँच के दर्पन से निकल

ख़ुदा सब का है, हिफाज़त करेगा
बस अपने अंदर के डर से निकल

चेहरा ही नहीं वज़ूद भी चमकेगा
इक बार आग के पैकर से निकल

मुकेश इलाहाबादी ----------------

बदन के ज़ख्म पाँव के छाले तो छुपा लूँगा

बदन के ज़ख्म पाँव के छाले तो छुपा लूँगा
पेट की आग, दिल के शोले कँहा ले जाऊँगा

जिस्म काट दोगे जला दोगे मार दोगे मगर
ख्वाब में तुम्हारे प्रेत बन - बन कर आऊँगा

तीरगी को मुझसे हर हाल में डरना ही पड़ेगा
कि सूरज हूँ,मै ख़ाक होने तक उजाला बाँटूंगा

सुबह होते ही अपनी खिड़कियाँ खोल देना
बुलबुल हूँ तुम्हारी छत पे देर तक चहकूँगा

मुकेश इत्र के समंदर में नहा के आया हूँ, मै 
ज़माने से लिपट जाऊँगा, देर तक महकूँगा

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

बाद मेहनत के भी नाक़ामियाँ रही

बाद मेहनत के भी नाक़ामियाँ रही
मेरे हिस्से फ़क़त  बदनामियाँ रही

जब  तक  महफ़िल रही दोस्त रहे
बाद उसके,तो सिर्फ तन्हाईयाँ रही 

ईश्क़ में शुकूँ पल दो  पल का रहा
फिर उम्रभर केवल  रुसवाइयाँ रही

जो हिमालय थे वे शान से तने रहे
मै क्या करता पास मेरे घटियाँ रही

बहुत बरसे, बादल  स्याह ज़ुल्फ़ों के
दिल में तो शोले और बिजलियाँ रही

मुकेश इलाहाबादी -----------------

रौशनी के लिए कोई भी इंतज़ाम नहीं

आफताब नहीं महताब नहीं चराग़ नहीं
रौशनी  के लिए  कोई भी इंतज़ाम नहीं

न हिन्दू हूँ न मुस्लिम न सिक्ख ईसाई
मेरी इंसानियत के सिवा कोई जात नहीं

शुबो शाम फ़क़त भाग - दौड़, भाग-दौड़
ज़िंदगी में इकपल सुकूँ नहीं आराम नहीं

ईश्क़ सोचूँ , ईश्क़ ओढ़ूँ , ईश्क़ बिछाऊँ
सिवाय मुहब्बत के काम नहीं बात नहीं


,मुकेश इलाहाबादी ----------------------


आफताब नहीं महताब नहीं चराग़ नहीं

आफताब नहीं महताब नहीं चराग़ नहीं
रौशनी  के लिए  कोई भी इंतज़ाम नहीं

न हिन्दू हूँ न मुस्लिम न सिक्ख ईशाई
मेरी इंसानियत के सिवा कोई जात नहीं

शुबो शाम फ़क़त भाग - दौड़ भाग- दौड़
ज़िंदगी में इकपल शुकूं नहीं आराम नहीं

,मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Friday, 10 November 2017

घुली है मिश्री जिसकी ज़बान में

घुली है मिश्री जिसकी ज़बान में
छुपी है तलवार उसकी म्यान में

घर- बार,धन-दौलत,रिश्ते-नाते
इनकी कीमत देखो शमशान में

वही राम,वही रहीम,वही अल्ला
एक ही सच गीता और कुरान में

साधू वही राम नाम का जप करे
चाहे घर पे हो या कि दुकान में

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Thursday, 9 November 2017

प्रेम पत्र - एक





प्रेम पत्र - एक

बहा
लो मुझे पत्थर को भी
जलप्रपात
सी अपनी उज्जवल हंसी की नदी में
दूर तक और देर तक
जहाँ से तुम
वाष्प बन कर घुलमिल जाती हो आकाश से
बादल बन कर
या फिर समंदर तक जहाँ से लौट कर तुम नहीं आती हो
और मै भी नहीं लौट पाऊँगा

ओ ! मेरी चाँदनी सी हँसी वाली प्रिये

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

इक बार तुझसे मुलाकात हो जाये

इक बार तुझसे मुलाकात हो जाये
फिर तूफ़ान आये बरसात हो जाए
ज़िंदगी से कोई और ख्वाहिश नहीं
तुझसे, सिर्फ इकबार बात हो जाए

मुकेश इलाहाबादी ------------------

Wednesday, 8 November 2017

किसी मुसव्विर को तेरी तस्वीर बनाने के पहले

किसी मुसव्विर को तेरी तस्वीर बनाने के पहले
सारी क़ायनात की ख़ूबसूरती को समझना होगा
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

Tuesday, 7 November 2017

तारे भी मस्ताने निकले


तारे भी  मस्ताने निकले
तेरे   ही    दीवाने  निकले

इक तू ही है सीधी - सादी
बाकी सब सयाने निकले

लिख के ग़ज़ल तेरे नाम
तुझको ही सुनाने निकले
 
सहरा जैसे अपने दिल में
गुले ईश्क़ खिलाने निकले

यूँ तो मै कोई रिन्द नहीं
पी के ग़म भुलाने निकले

मुकेश इलाहाबादी -----

ज़न्नत से भी ज़्यादा मज़ा तुम्हारा हिज़्र देता है

ज़न्नत से भी ज़्यादा मज़ा तुम्हारा हिज़्र देता है
तुमसे मिल के ज़िंदगी का मज़ा कुछ और होता है

कौन कम्बख्त कहता है महताब सफ़ेद होता है
तुझे देखे तो पता लगे चाँद भी गुलाबी दिखता है

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------

Monday, 6 November 2017

अन्यमनस्क सा, लिखता रहा- काटता रहा तुम्हारा नाम

अन्यमनस्क
सा, लिखता रहा- काटता रहा
तुम्हारा नाम

फिर अचानक कागज़ को तुडी -मुड़ी कर के
गोल-गोल गेंद सी बना के उछाल दी
ये सोच के शायद इस कागज़ की गेंद के साथ
तुम्हारा नाम और तुम्हारी यादें भी
उड़ती हुई अंतरिक्ष में खो जाएँगी
और मै मुक्त हो जाऊंगा तुम्हारी स्मृत्यों से
लेकिन न जाने किस आकर्षण से या कि
गुर्त्वाकर्षण से लौट आयी है
तुम्हारी यादों की गेंद
जिसे घुमा रहा हूँ गोल गोल एक बार फिर अपनी हथेलियों में

मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------

फर्क --

फर्क --

मेरी 
किताब में सिर्फ 'तुम' हो 
और , तुम्हारी किताब में ?
'मै ' कंही भी नहीं 


मुकेश इलाहाबादी -------

Thursday, 2 November 2017

अपनों से बिछड़ के रोता बहुत है


अपनों से बिछड़ के रोता बहुत है
मन का पंक्षी फड़फड़ाता बहुत है

जग में सारे बंधन मन के मन ही
मोह - माया  में  फंसाता  बहुत है

जब हों अपनी मन मर्ज़ी के काज
तो, मुकेश मन खुश होता बहुत है

मुकेश इलाहाबादी ------------------

Wednesday, 1 November 2017

हमसे मुहब्बत करना या लड़ लेना

हमसे मुहब्बत करना या लड़ लेना
ज़िन्दग़ी में इक बार तो मिल लेना 

गर  किसी रोज़ मेरे कूचे से गुज़रो
पल -दो-पल मेरे घर भी रुक  लेना 

भले तुम दाद देना या न देना, मगर
इकदो ग़ज़ल मुकेश की भी सुन लेना

मुकेश इलाहाबादी -----------------

फलक पे उड़ने उड़ने को जी चाहता है

फलक पे उड़ने उड़ने को जी चाहता है
तुमसे मिल के मन परिंदा हो जाता है

आहट तो होती है, पर कोई होता नहीं
जाने कौन है ? कुंडी खटखटा जाता है

मै मौन हूँ तुम भी तो देर से चुप, फिर 
ये कौन है जो कानो में गुनगुनाता है ?

मुआ ईश्क़ भी इक पिल्ले का बच्चा है
वक़्त बेवक़त, भौंकता है चिंचियाता है 

तुम्हारी आँखे मेरा डाकिया मुझसे तेरा
हाले दिल सुना जाता है, बता जाता है 


मुकेश इलाहाबादी ---------------------

रेत् के महल बनाता हूँ

रेत् के महल बनाता हूँ
तेरे ही ख्वाब देखता हूँ

ढेर सारा उजाला बांटू
इसी लिए मै जलता हूँ

किसी दिन तो पढ़ोगी
जो ग़ज़ल लिखता हूँ

सारी दुनिया मतलबी
सुन सिर्फ मै ही तेरा हूँ

मुकेश इलाहाबादी ----