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Monday, 6 November 2017

अन्यमनस्क सा, लिखता रहा- काटता रहा तुम्हारा नाम

अन्यमनस्क
सा, लिखता रहा- काटता रहा
तुम्हारा नाम

फिर अचानक कागज़ को तुडी -मुड़ी कर के
गोल-गोल गेंद सी बना के उछाल दी
ये सोच के शायद इस कागज़ की गेंद के साथ
तुम्हारा नाम और तुम्हारी यादें भी
उड़ती हुई अंतरिक्ष में खो जाएँगी
और मै मुक्त हो जाऊंगा तुम्हारी स्मृत्यों से
लेकिन न जाने किस आकर्षण से या कि
गुर्त्वाकर्षण से लौट आयी है
तुम्हारी यादों की गेंद
जिसे घुमा रहा हूँ गोल गोल एक बार फिर अपनी हथेलियों में

मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------

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