Pages

Wednesday, 29 November 2017

यंहा अँधेरा ही अँधेरा होता है

यंहा अँधेरा ही अँधेरा होता है
तेरे आने से  उजाला होता है

ग़र रातों में बेनक़ाब निकले,
महताब  का  अंदेसा होता है

तू आ जाये  तो सावन भादों
वर्ना बारों मास सूखा होता है

ये  बड़ी  मतलबी  दुनिया है
यंहा कौन किसी का होता है


मुकेश इलाहाबादी ----------

No comments:

Post a Comment