ख़ज़ाने सारे लुटा दूँगा
तेरी यादें मिटा दूंगा
अँधेरे रास आने लगे
सभी चराग़ बुझा दूंगा
अपने माज़ी के पुलिंदे
मै दरिया में बहा दूँगा
तनहाई के ताबूत में
खुद को ही दफ़ना दूंगा
ये ग़ज़लें नहीं लोरी हैं
मुकेश को मै सुला दूँगा
मुकेश इलाहाबादी --------
तेरी यादें मिटा दूंगा
अँधेरे रास आने लगे
सभी चराग़ बुझा दूंगा
अपने माज़ी के पुलिंदे
मै दरिया में बहा दूँगा
तनहाई के ताबूत में
खुद को ही दफ़ना दूंगा
ये ग़ज़लें नहीं लोरी हैं
मुकेश को मै सुला दूँगा
मुकेश इलाहाबादी --------
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