प्रेम पत्र - एक
बहा
लो मुझे पत्थर को भी
जलप्रपात
सी अपनी उज्जवल हंसी की नदी में
दूर तक और देर तक
जहाँ से तुम
वाष्प बन कर घुलमिल जाती हो आकाश से
बादल बन कर
या फिर समंदर तक जहाँ से लौट कर तुम नहीं आती हो
और मै भी नहीं लौट पाऊँगा
ओ ! मेरी चाँदनी सी हँसी वाली प्रिये
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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