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Wednesday, 15 November 2017

ये और बात ज़माने के लिए अच्छा हूँ

ये और बात ज़माने के लिए अच्छा हूँ
तुम्हारे लिए तो, आवारा हूँ ,लफंगा हूँ

कुछ ग़ज़लें कुछ तुम्हारे नाम के ख़त
सब छोड़ चला जाऊँगा, सच कहता हूँ

यूँ तो शहर में बहुत हैं चाहने वाले मेरे
फिर भी जाने क्यूँ तनहाई में रहता हूँ

खल्वत में अक्सर ये सोचा करता हूँ
मै तुझसे बिछड़ कर भी, क्यूँ ज़िंदा हूँ

मुकेश  इलाहाबादी ------------------

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