ये और बात ज़माने के लिए अच्छा हूँ
तुम्हारे लिए तो, आवारा हूँ ,लफंगा हूँ
कुछ ग़ज़लें कुछ तुम्हारे नाम के ख़त
सब छोड़ चला जाऊँगा, सच कहता हूँ
यूँ तो शहर में बहुत हैं चाहने वाले मेरे
फिर भी जाने क्यूँ तनहाई में रहता हूँ
खल्वत में अक्सर ये सोचा करता हूँ
मै तुझसे बिछड़ कर भी, क्यूँ ज़िंदा हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------------
तुम्हारे लिए तो, आवारा हूँ ,लफंगा हूँ
कुछ ग़ज़लें कुछ तुम्हारे नाम के ख़त
सब छोड़ चला जाऊँगा, सच कहता हूँ
यूँ तो शहर में बहुत हैं चाहने वाले मेरे
फिर भी जाने क्यूँ तनहाई में रहता हूँ
खल्वत में अक्सर ये सोचा करता हूँ
मै तुझसे बिछड़ कर भी, क्यूँ ज़िंदा हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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