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Wednesday, 15 November 2017

जाने किस मिट्टी के बने हो मुकेश बाबू

जाने किस मिट्टी के बने हो मुकेश बाबू
साँझ के चराग़ सा जले हो मुकेश बाबू

यंहा तो लोग छाँह में भी छतरी ढूंढते हैं
तुम पाँव नंगे धूप में चले हो मुकेश बाबू 

गवाह है तुम्हारे बदन के ज़ख्म ज़ख्म
आँधी - तूफ़ान में जिए हो मुकेश बाबू

लोग, एक बार में टूट जाते हैं, तुम तो 
उम्र भर हादसों में जिए हो मुकेश बाबू

लिबास की तरह लोग बदलते हों दोस्त
कैसे एक के हो कर के रहे हो मुकेश बाबू

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

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