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Sunday, 12 November 2017

रौशनी के लिए कोई भी इंतज़ाम नहीं

आफताब नहीं महताब नहीं चराग़ नहीं
रौशनी  के लिए  कोई भी इंतज़ाम नहीं

न हिन्दू हूँ न मुस्लिम न सिक्ख ईसाई
मेरी इंसानियत के सिवा कोई जात नहीं

शुबो शाम फ़क़त भाग - दौड़, भाग-दौड़
ज़िंदगी में इकपल सुकूँ नहीं आराम नहीं

ईश्क़ सोचूँ , ईश्क़ ओढ़ूँ , ईश्क़ बिछाऊँ
सिवाय मुहब्बत के काम नहीं बात नहीं


,मुकेश इलाहाबादी ----------------------


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