याद आये है तेरा फूलों सा महकना
स्याह रातों में चाँदनी सा चमकना
हाथ थामे थामे चले जाना दूर तक
तेरा रह-२,भरी गागर सा छलकना
माथे पे बल खाती वो बाँकी ज़ुल्फ़ें
जिन्हे अदा से संवारना फिर हँसना
कभी खिलखिलाना कभी रूठ जाना
कभी कभी तेरा खुद,मुझसे लिपटना
समंदर किनारे दूर तक दौड़ते जाना
फिर वो तेरा मेरे इंतज़ार में ठहरना
मुकेश इलाहाबादी ---------------
स्याह रातों में चाँदनी सा चमकना
हाथ थामे थामे चले जाना दूर तक
तेरा रह-२,भरी गागर सा छलकना
माथे पे बल खाती वो बाँकी ज़ुल्फ़ें
जिन्हे अदा से संवारना फिर हँसना
कभी खिलखिलाना कभी रूठ जाना
कभी कभी तेरा खुद,मुझसे लिपटना
समंदर किनारे दूर तक दौड़ते जाना
फिर वो तेरा मेरे इंतज़ार में ठहरना
मुकेश इलाहाबादी ---------------
No comments:
Post a Comment