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Sunday, 14 October 2018

फूल की तरह कभी खिला ही नही

फूल की तरह कभी खिला ही नही
किसी की साँसों में मै बसा ही नही

भला कोई मेरा कैसे हो गया होता
बज़्‍म में मै किसी से मिला ही नही

मंज़िल तक भला मै पहुंचता कैसे
घर से मैंने क़दम निकला ही नहीं

पलट के कोई कैसे मुझ तक आता
किसी को दिल से पुकारा ही नही

मेरी बातों का कोई क्या ज़वाब देता
जब मैंने किसी से कुछ पूछा ही नही

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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