मुझे मालूम है मुकेश तू मुहब्बत किसी कदर छोड़ नही सकता
कि मुहब्बत मेरे दिल मे सांस और रगों मे खूं बन के रन्वा है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------------
कि मुहब्बत मेरे दिल मे सांस और रगों मे खूं बन के रन्वा है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------------
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