हमसे हंस बोल और इठला रहे थे
हमे क्या पता वे दिल बहला रहे थे
अपने जेब र्खच के पैसों से उनको
रोज पिज्जा औ र्बगर खिला रहे थे
उनका मोबाइल मै रिर्चाज कराता
औवो मेरे रकीब से बतिया रहे थे
हमने की इजहार ए मुहब्ब्त तो वो
मुहॅ हथेलीसे दबा खिलखिला रहे थे
हम इतने सीधे मासूम ठहरे मुकेश
उनकी ठिठोली पेभी जॉ लुटा रहे थे
मुकेश इलाहाबादी .................
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