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Tuesday, 25 June 2013

हमसे हंस बोल और इठला रहे थे



हमसे हंस बोल और इठला रहे थे

हमे क्या पता वे दिल बहला रहे थे



अपने जेब र्खच के पैसों से उनको

रोज पिज्जा औ र्बगर खिला रहे थे



उनका मोबाइल मै रिर्चाज कराता

औवो मेरे रकीब से बतिया रहे थे



हमने की इजहार ए मुहब्ब्त तो वो

मुहॅ हथेलीसे दबा खिलखिला रहे थे



हम इतने सीधे मासूम ठहरे मुकेश 

उनकी ठिठोली पेभी जॉ लुटा रहे थे



मुकेश इलाहाबादी .................

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