जो ज़िन्दगी भर न पहचाने गए
पर बाद मरने के वे भी जाने गए
आसानी से अपना गाँव नहीं छोड़ा
मजबूरी मे ही परदेश कमाने गए
मुट्ठी भर पैसा थैला भर शक्कर
भूल जाओ सस्ती के ज़माने गए
जंहा पर ढोल ही ढोल बज रहे थे
बेकार तुम वहाँ तूती बजाने गए
लोग बोरियों मे अनाज लिए थे
हम भी दो चार दाने भुनाने गए
तुकबंदी औ पैरोडी की महफ़िल मे
मुकेश तुम क्यों ग़ज़ल सुनाने गए
मुकेश इलाहाबादी -----------------
पर बाद मरने के वे भी जाने गए
आसानी से अपना गाँव नहीं छोड़ा
मजबूरी मे ही परदेश कमाने गए
मुट्ठी भर पैसा थैला भर शक्कर
भूल जाओ सस्ती के ज़माने गए
जंहा पर ढोल ही ढोल बज रहे थे
बेकार तुम वहाँ तूती बजाने गए
लोग बोरियों मे अनाज लिए थे
हम भी दो चार दाने भुनाने गए
तुकबंदी औ पैरोडी की महफ़िल मे
मुकेश तुम क्यों ग़ज़ल सुनाने गए
मुकेश इलाहाबादी -----------------
No comments:
Post a Comment