Pages

Friday, 21 June 2013

एक और इजाफा हुआ हिज्र की रातों मे




 एक और इजाफा हुआ हिज्र की रातों मे
अबतो रात भी नही कटती तेरी यादों मे

अभी तक महकती है घर की दरो दीवारें
छोड गये थे तुम खुशबू अपनी हवाओं मे

मासूम चेहरा और तेरे बिखरे बिखरे गेसू
वही चेहरा आज भी बसा मेरी निगाहों मे

कि वर्षो बीत गये तुझसे बिछडे हुये तुमसे
पर तेरा जिक्र आ ही जाता है बातो बातों मे

मुकेश  इलाहाबादी ...... ..............

No comments:

Post a Comment