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Sunday, 9 June 2013

इधर सूरज की चमक कम हुई

इधर सूरज की चमक कम हुई
उधर चाँद की आँख नम हुई

चमन मे उडती हुई अच्छी न लगी
मनचलों के हाथ तितली बेदम हुई

लम्हा लम्हा,क़तरा- कतरा रोई रात
तब जाके शुबो चांदनी शबनम हुई

उसके हाथो इक्का औ बाद्शा हारे
जब से वह तुरुप की बेग़म हुई

चल  रहे  थे  लू  के थपड़े अब तक
तेरी ज़ुल्फ़ से ही हवा पुरनम हुई

मुकेश इलाहाबादी ----------------

1 comment:

  1. आपकी यह रचना कल सोमवार (10-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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