इधर सूरज की चमक कम हुई
उधर चाँद की आँख नम हुई
चमन मे उडती हुई अच्छी न लगी
मनचलों के हाथ तितली बेदम हुई
लम्हा लम्हा,क़तरा- कतरा रोई रात
तब जाके शुबो चांदनी शबनम हुई
उसके हाथो इक्का औ बाद्शा हारे
जब से वह तुरुप की बेग़म हुई
चल रहे थे लू के थपड़े अब तक
तेरी ज़ुल्फ़ से ही हवा पुरनम हुई
मुकेश इलाहाबादी ----------------
उधर चाँद की आँख नम हुई
चमन मे उडती हुई अच्छी न लगी
मनचलों के हाथ तितली बेदम हुई
लम्हा लम्हा,क़तरा- कतरा रोई रात
तब जाके शुबो चांदनी शबनम हुई
उसके हाथो इक्का औ बाद्शा हारे
जब से वह तुरुप की बेग़म हुई
चल रहे थे लू के थपड़े अब तक
तेरी ज़ुल्फ़ से ही हवा पुरनम हुई
मुकेश इलाहाबादी ----------------
आपकी यह रचना कल सोमवार (10-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
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