आखों में जो नीर है
बैठे ठाले की तरंग ----------------
आखों में जो नीर है
बहुत पुरानी पीर है
घाव न ये भर पायेगा
दिल के अन्दर तीर है
कमजोरों पे है वार करें
कलयुग के सब वीर हैं
इल्म न इनको रत्ती भर
पर कहते हम 'कबीर' हैं
मत्ला-मक्ता, फर्क न जाने
पर सब कहते हम 'मीर' हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------
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