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Wednesday, 4 April 2012

चाँद की बांहों से निकल

शबनम,
चाँद की बांहों से निकल
खुश थी बहुत
मुस्कुराती, मासूम चांदी
सी हंसी,
ये देख सहा न गया आफताब से
उसने फैला दिए अपने
दहकते पंजे
मासूम शबनम पहले तो सुर्ख हुई
फिर दहकने लगी 
फिर खो गयी
हवा में
और चल पडी
किसी बादल  से मिलने
ताकि एक बार फिर
रात के आँचल में सज के 
चाँद की बांहों में मुस्कुराए
अपनी मासूम हंसी के साथ
आज सी सुहानी सुबह में

मुकेश इलाहाबादी 

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