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Friday, 6 April 2012

बेहद तपते हुये दिन की समाप्ती के बाद


बेहद तपते हुये दिन की
समाप्ती के बाद
एक बेहद उदास व चिपचिपी शाम
अपने अकेलपन से से जूझते हुये
तुम्हारी यादों की ठन्डी फुहार में भीगते हुये
बैठे रहना अच्छा लग रहा है
सच न जाने कितने दिन व शाम
बिता सकता हूं इसी तरह बैठे रह कर
बिना इस बात की परवाह किये
कि तुम मुझे याद करती हो भी या नही।
याकि कभी अकेले में या कि उदास होने पर भी
तुम मुझे याद भी न करती हो।
याकि तुमने मुझसे कभी कुछ कहा न हो
और न ही मैने कहना चाह के भी न कहा हो।
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

2 comments:

  1. Intense emotions that can grip reader's heart easily......! Pic is perfectly in the match of your poem.

    Good Wishes,..!

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  2. बेहद खूबसूरत ख्यालों को उकेरा है अल्फाजों में......

    लाजवाब!!!!
    अनु

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