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Monday, 30 April 2012
Sunday, 29 April 2012
ज़िन्दगी से एक दिन हिसाब मांगूगा
बैठे ठाले की तरंग --------------
ज़िन्दगी से एक दिन हिसाब मांगूगा
मिली क्यूँ कैदे तन्हाई ज़वाब मांगूगा
छुपा कर ख़त जिमसे हमने दिया था
मिलोगी तो फिर से वो किताब मांगूगा
दिल तो हमने ही दिया था, दे ही दिया
सुबो शाम की फिर वो मुलाक़ात मांगूगा
परिंदों की उड़ाने और वो मुहब्बत का घर
माजी से वापस अपने सारे ख्वाब मांगूगा
शाम ऐ ज़िन्दगी में भूल जाऊं अपने ग़म
खुदा से ऐसा मैखाना ऐसी शराब मांगूगा
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
Friday, 27 April 2012
Thursday, 26 April 2012
एक शब्द चित्र ------------------
एक शब्द चित्र ------------------
कालेज की लाईब्रेरी में
लड़का पढ़ रहा था
लडकी पढ़ रही थी
दोनों पास पास पढ़ रहे थे
लड़का इतहास की किताब में
लडकी का भूगोल पढ़ रहा था,
लडकी 'कीट्स' की कविता में
'प्रेम-तत्व' ढूंढ रही थी
लाईब्रेरियन इन आम से द्रश्यों से बेखबर
बहार के द्रश्यों में डूबा था
तभी एक और जोड़ा,
हाथों में हाथ लिए आया
वे किसी साहित्यिक प्रोजेक्ट के लिए
'प्रेम तत्व का सौंदर्य शास्त्र' मांग रहे थे
अब पहले वाला लड़का,
लडकी को पढ़ रहा था
और लडकी लड़के में प्रेम-तत्व ढूंढ रही थी
शायद दोनों एक दुसरे को पढ़ भी रहे थे
और एक दुसरे में कुछ ढूंढ रहे थे
दूसरा जोड़ा अपनी पसंद की किताब
ले के जा चुका था -
और लाइब्रेरियन एक बार फिर से,
बाहर के आम से द्रश्यों में डूब चूका था
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
कालेज की लाईब्रेरी में
लड़का पढ़ रहा था
लडकी पढ़ रही थी
दोनों पास पास पढ़ रहे थे
लड़का इतहास की किताब में
लडकी का भूगोल पढ़ रहा था,
लडकी 'कीट्स' की कविता में
'प्रेम-तत्व' ढूंढ रही थी
लाईब्रेरियन इन आम से द्रश्यों से बेखबर
बहार के द्रश्यों में डूबा था
तभी एक और जोड़ा,
हाथों में हाथ लिए आया
वे किसी साहित्यिक प्रोजेक्ट के लिए
'प्रेम तत्व का सौंदर्य शास्त्र' मांग रहे थे
अब पहले वाला लड़का,
लडकी को पढ़ रहा था
और लडकी लड़के में प्रेम-तत्व ढूंढ रही थी
शायद दोनों एक दुसरे को पढ़ भी रहे थे
और एक दुसरे में कुछ ढूंढ रहे थे
दूसरा जोड़ा अपनी पसंद की किताब
ले के जा चुका था -
और लाइब्रेरियन एक बार फिर से,
बाहर के आम से द्रश्यों में डूब चूका था
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
Wednesday, 25 April 2012
मैने ज़िदगी से कुछ सवाल किये थे
बैठे ठाले की तरंग ----------------------
मैने ज़िदगी से कुछ सवाल किये थे
मुहब्बत के,
वफा के
ज़िंदगी के
लेकिन ....
ये सवाल आज भी अनउत्तरित हैं ....
उसी तरह,
पहले दिन की तरह
ये वो सवाल हैं,
जिनके जवाब हवाओं से पूछा
हवाऐं हंसी, जुल्फों से कुछ पल के लिये उलझी सुलझी
और फिर इठला कर, खलाओं मे न जाने कहां गुम हो गयी
ये वो सवाल हैं,
जिनके जवाब कभी महताब तो कभी आफताब
की रोशनी मे ढूंढता रहा,
लेकिन रोशनी भी कुछ पल के लिये
उसके चेहरे से टकरायी, मुस्कुराई
फिर उफूक के न जाने किस जंगल मे खो गयी
मैने ये सवाल उन लहरों से किया
जो ठांठे मारती थी ख्वाबों के समंदर मे
लेकिन ...
ये लहरें भी खो चुकी हैं,
अपनी अंगड़ाइयों के साथ उन ऑखों मे
जहां इनका वजूद हरहराता था
इन सवालों के जवाब पूछता रहा,
बहुत अर्से तक अपने आपसे,
अपनी रुह से ....
मग़र वहां भी मिली
तारीक़ियां और वीरानियां जिनके पीछे आज भी
मौजूद हैं वे सवाल उसी तरह
जिस तरह
पहले दिन थे
उसकी ऑखों मे
मेरी ऑखों मे
मेरे जेहन मे
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
मैने ज़िदगी से कुछ सवाल किये थे
मुहब्बत के,
वफा के
ज़िंदगी के
लेकिन ....
ये सवाल आज भी अनउत्तरित हैं ....
उसी तरह,
पहले दिन की तरह
ये वो सवाल हैं,
जिनके जवाब हवाओं से पूछा
हवाऐं हंसी, जुल्फों से कुछ पल के लिये उलझी सुलझी
और फिर इठला कर, खलाओं मे न जाने कहां गुम हो गयी
ये वो सवाल हैं,
जिनके जवाब कभी महताब तो कभी आफताब
की रोशनी मे ढूंढता रहा,
लेकिन रोशनी भी कुछ पल के लिये
उसके चेहरे से टकरायी, मुस्कुराई
फिर उफूक के न जाने किस जंगल मे खो गयी
मैने ये सवाल उन लहरों से किया
जो ठांठे मारती थी ख्वाबों के समंदर मे
लेकिन ...
ये लहरें भी खो चुकी हैं,
अपनी अंगड़ाइयों के साथ उन ऑखों मे
जहां इनका वजूद हरहराता था
इन सवालों के जवाब पूछता रहा,
बहुत अर्से तक अपने आपसे,
अपनी रुह से ....
मग़र वहां भी मिली
तारीक़ियां और वीरानियां जिनके पीछे आज भी
मौजूद हैं वे सवाल उसी तरह
जिस तरह
पहले दिन थे
उसकी ऑखों मे
मेरी ऑखों मे
मेरे जेहन मे
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
Tuesday, 24 April 2012
मलगजी शाम के साए में बैठ,तेरी
बैठे ठाले की तरंग --------------
मलगजी शाम के साए में बैठ,तेरी
यादों की नई नज़्म गाना चाहता हूँ
रुसवाई,बेवफाई, और तन्हाएयों मे
दास्ताने ज़िन्दगी सुनाना चाहता हूँ
यादों की नई नज़्म गाना चाहता हूँ
रुसवाई,बेवफाई, और तन्हाएयों मे
दास्ताने ज़िन्दगी सुनाना चाहता हूँ
जब स्याही घुल रही हों फ़ज़ाओं मे
माजी की बेहोसी मे डूबना चाहता हूँ
खामुशी को चीरती हो पपीहे की टेर
यादों की नई नज़्म गाना चाहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
Monday, 23 April 2012
मेरे घर दरो दीवार बोलती हैं
बैठे ठाले की तरंग ---------------
मेरे घर दरो दीवार बोलती हैं
रात दिन तन्हाइयां डोलती हैं
गुफ्तगूँ मैंने किसी से की नहीं
राज़ मेरा सिसकियाँ खोलती हैं
आवारगी मेरा शगल रहा नहीं
शहर में आखें कुछ खोजती हैं
पंख फडफडा के भी क्यूँ उड़ा नहीं
परिंदे को कोइ तो वज़ह रोकती है
रोशनी कभी मेरे घर आयी नहीं
मुझको मेरी परछइयां खोजती हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------
Thursday, 19 April 2012
Wednesday, 18 April 2012
Tuesday, 17 April 2012
वफ़ा तुम्हारी फितरत नही
बैठे ठाले की तरंग -----------
वफ़ा तुम्हारी फितरत नही
बेवफाई हमारी आदत नही
हर बार तुमने रुसवा किया
फिर भी हमें शिकायत नही
लुट गया अपना सारा जँहा
आदत में मिरे किफायत नही
क़द के मै तुम्हारे बराबर बनूँ
ऐसी तो अपनी लियाकत नही
दिल देके तुमसे कोई उम्मीद रखूँ
मुहब्बत मेरे लिए तिजारत नही
मुकेश इलाहाबादी -----------------
बेवफाई हमारी आदत नही
हर बार तुमने रुसवा किया
फिर भी हमें शिकायत नही
लुट गया अपना सारा जँहा
आदत में मिरे किफायत नही
क़द के मै तुम्हारे बराबर बनूँ
ऐसी तो अपनी लियाकत नही
दिल देके तुमसे कोई उम्मीद रखूँ
मुहब्बत मेरे लिए तिजारत नही
मुकेश इलाहाबादी -----------------
Monday, 16 April 2012
जिस्म से जिस्म की दूरियां कोई दूरियां नहीं
बैठे ठाले की तरंग --------------------------------------
जिस्म से जिस्म की दूरियां कोई दूरियां नहीं
दिल से दिल मिल न पाए ऐसी कोई मजबूरियां नहीं
स्याह रातों में हम चलते रहे उम्र भर,
सफ़र में उजाला भर दे ऐसी कोई बिजलियाँ नहीं
है बेहिस चांदनी फ़ैली हुई हर सिम्त,
ले सकूं लुत्फ़ चांदनी का ऐसी कोई खिड़कियाँ नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------
जिस्म से जिस्म की दूरियां कोई दूरियां नहीं
दिल से दिल मिल न पाए ऐसी कोई मजबूरियां नहीं
स्याह रातों में हम चलते रहे उम्र भर,
सफ़र में उजाला भर दे ऐसी कोई बिजलियाँ नहीं
है बेहिस चांदनी फ़ैली हुई हर सिम्त,
ले सकूं लुत्फ़ चांदनी का ऐसी कोई खिड़कियाँ नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------
Sunday, 15 April 2012
अनछुए गीतों की अनगूंज तुम्हारी बातों में
बैठे ठाले की तरंग -----------------------------
अनछुए गीतों की अनगूंज तुम्हारी बातों में
शुभ्रलहर गंगा की झलक तुम्हारी आखों में
श्यामल श्यामल कुंतल केश जब लहराओं
घनघोर घटा सी छा जाती हैं चार दिशाओं में
जब तुम पहनो चूड़ी,कंगना और लगाओ बेंदी
भरपूर नशा छा जाए है मेरी हर शिराओं में
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------
अनछुए गीतों की अनगूंज तुम्हारी बातों में
शुभ्रलहर गंगा की झलक तुम्हारी आखों में
श्यामल श्यामल कुंतल केश जब लहराओं
घनघोर घटा सी छा जाती हैं चार दिशाओं में
जब तुम पहनो चूड़ी,कंगना और लगाओ बेंदी
भरपूर नशा छा जाए है मेरी हर शिराओं में
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------
Thursday, 12 April 2012
Wednesday, 11 April 2012
Tuesday, 10 April 2012
Monday, 9 April 2012
ज़िन्दगी ने हमको सताया बहुत
बैठे ठाले की तरंग ----------------
ज़िन्दगी ने हमको सताया बहुत
मौत ने भी हमको रुलाया बहुत
जब तक गुलों के साए में रहा
गुलशन ने हमको हंसाया बहुत
मंजिल तो हमने अब तक न पायी
लेकिन सफ़र ने हमें थकाया बहुत
थके हुए थे बहुत, ताज़ा दम हो गए
चांदनी में शब् भर,हमने नहाया बहुत
नींद न आयी किसी करवट, रात भर
उनकी यादों ने हमको जगाया बहुत
मुकेश इलाहाबादी --------------------
Sunday, 8 April 2012
Friday, 6 April 2012
बेहद तपते हुये दिन की समाप्ती के बाद
बेहद तपते हुये दिन की
समाप्ती के बाद
एक बेहद उदास व चिपचिपी शाम
अपने अकेलपन से से जूझते हुये
तुम्हारी यादों की ठन्डी फुहार में भीगते हुये
बैठे रहना अच्छा लग रहा है
सच न जाने कितने दिन व शाम
बिता सकता हूं इसी तरह बैठे रह कर
बिना इस बात की परवाह किये
कि तुम मुझे याद करती हो भी या नही।
याकि कभी अकेले में या कि उदास होने पर भी
तुम मुझे याद भी न करती हो।
याकि तुमने मुझसे कभी कुछ कहा न हो
और न ही मैने कहना चाह के भी न कहा हो।
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------
Thursday, 5 April 2012
Wednesday, 4 April 2012
चाँद सूरज मै उगाऊं अपने आँगन मे
बैठे ठाले की तरंग ----------------------
चाँद सूरज मै उगाऊं अपने आँगन मे
धुप छांह मै खेलूँ अपने आँगन मे
जान कर छुप जाओ जब परदे की ओट
खेल खेल मे तुझको ढूँढू,अपने आँगन मे
तुलसी चौरे को दिया बाती औ देती अर्ध्य
सुबहो शाम तुझको देखूं ,अपने आँगन मे
मुझे शाम ढले जब देर हो घर लौट आने मे
तुझे,बनावटी गुस्से मे देखूं अपने आँगन मे
छुट्टियों का दिन हो, और हो सुनहरी शाम
तेरी स्याह जुल्फों से खेलूँ अपने आँगन मे
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
चाँद सूरज मै उगाऊं अपने आँगन मे
धुप छांह मै खेलूँ अपने आँगन मे
जान कर छुप जाओ जब परदे की ओट
खेल खेल मे तुझको ढूँढू,अपने आँगन मे
तुलसी चौरे को दिया बाती औ देती अर्ध्य
सुबहो शाम तुझको देखूं ,अपने आँगन मे
मुझे शाम ढले जब देर हो घर लौट आने मे
तुझे,बनावटी गुस्से मे देखूं अपने आँगन मे
छुट्टियों का दिन हो, और हो सुनहरी शाम
तेरी स्याह जुल्फों से खेलूँ अपने आँगन मे
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
चाँद की बांहों से निकल
शबनम,
चाँद की बांहों से निकल
खुश थी बहुत
मुस्कुराती, मासूम चांदी
सी हंसी,
ये देख सहा न गया आफताब से
उसने फैला दिए अपने
दहकते पंजे
मासूम शबनम पहले तो सुर्ख हुई
फिर दहकने लगी
फिर खो गयी
हवा में
और चल पडी
किसी बादल से मिलने
ताकि एक बार फिर
रात के आँचल में सज के
चाँद की बांहों में मुस्कुराए
अपनी मासूम हंसी के साथ
आज सी सुहानी सुबह में
मुकेश इलाहाबादी
चाँद की बांहों से निकल
खुश थी बहुत
मुस्कुराती, मासूम चांदी
सी हंसी,
ये देख सहा न गया आफताब से
उसने फैला दिए अपने
दहकते पंजे
मासूम शबनम पहले तो सुर्ख हुई
फिर दहकने लगी
फिर खो गयी
हवा में
और चल पडी
किसी बादल से मिलने
ताकि एक बार फिर
रात के आँचल में सज के
चाँद की बांहों में मुस्कुराए
अपनी मासूम हंसी के साथ
आज सी सुहानी सुबह में
मुकेश इलाहाबादी
चिरकाल तक तुम्हे याद करते हुए
चिरकाल तक तुम्हे याद करते हुए
बैठा रह सकता हूँ ,
चट्टान बन जाने की हद तक
और, यंहा तक की,
इंतज़ार के अनंत अनत युगों तक
धुप छाह अंधड़ पानी सहते हुए
बिखर सकता हूँ ,
बह जाने को नदी नाले से होते हुए
नीले समुद्र में रेत बन कर
ताकि कभी तुम उधर से गुजरो
तो तुम्हारे पांवों का स्पर्श पा सकूं
मुकेश इलाहाबादी -------------------
Tuesday, 3 April 2012
Sunday, 1 April 2012
हो गया कंठ मेरा भी नील प्यारे
बैठे ठाले की तरंग -------------------
हो गया कंठ मेरा भी नील प्यारे
जिंदगी में पीया है इतना गरल प्यारे
जिया है शिद्दत से मुहब्बत को हमने
होगी मुहब्बत तुम्हारे लिए शगल प्यारे
हो गया कंठ मेरा भी नील प्यारे
जिंदगी में पीया है इतना गरल प्यारे
जिया है शिद्दत से मुहब्बत को हमने
होगी मुहब्बत तुम्हारे लिए शगल प्यारे
कि मुहब्बत को मत समझ सरल प्यारे
गर जो दास्ताने मुहब्बत अपनी सुनाऊँ
हो जायेगी तुम्हारी भी आखें सजल प्यारे
जम गया था पत्थर सा दिल मेरा
ऐ मुकेश, कर दिया मुहब्बत ने तरल प्यारे
मुकेश इलाहाबादी --------------------------