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Sunday, 29 April 2012

ज़िन्दगी से एक दिन हिसाब मांगूगा

बैठे ठाले की तरंग --------------

ज़िन्दगी से एक दिन हिसाब मांगूगा
मिली क्यूँ कैदे तन्हाई ज़वाब मांगूगा

छुपा कर ख़त जिमसे हमने दिया था
मिलोगी तो फिर से वो किताब मांगूगा

दिल तो हमने ही दिया था, दे ही दिया
सुबो शाम की फिर वो मुलाक़ात मांगूगा

परिंदों की उड़ाने और वो मुहब्बत का घर
माजी से वापस अपने सारे ख्वाब मांगूगा

शाम ऐ ज़िन्दगी में भूल जाऊं अपने ग़म
खुदा से ऐसा मैखाना ऐसी शराब मांगूगा

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

2 comments:

  1. वाह...वाह,,,,,

    परिंदों की उड़ाने और वो मुहब्बत का घर
    माजी से वापस अपने सारे ख्वाब मांगूगा

    बहुत खूब मुकेश जी.

    सादर.

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