अहमक हूँ बेवजह फिरता हूँ
अंधेरी रात में सूरज ढूंढता हूँ
भीड़ अब अच्छी नहीं लगती
अपने में ही सिमटा रहता हूँ
जानता हूँ तू जवाब न देगी,
तुझे ख़त फिर भी लिखता हूँ
फ़ना हो के फूल सा महकूंगा
तू देख लेना मैं सच कहता हूँ
किस्सागोई मुझे आती नहीं,
बातें सारी ग़ज़ल में कहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------
अंधेरी रात में सूरज ढूंढता हूँ
भीड़ अब अच्छी नहीं लगती
अपने में ही सिमटा रहता हूँ
जानता हूँ तू जवाब न देगी,
तुझे ख़त फिर भी लिखता हूँ
फ़ना हो के फूल सा महकूंगा
तू देख लेना मैं सच कहता हूँ
किस्सागोई मुझे आती नहीं,
बातें सारी ग़ज़ल में कहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------
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