यूँ तो हज़ार ग़म हैं बताने को
वजहें और भी हैं मुस्कुराने को
बहुत दूर से आया हूँ, तुझको
अपना दर्दों - ग़म सुनाने को
इक दिन तो मिलने आ जाओं
ढेरों बातें हैं तुमको सुनाने को
सावन भादों के बादल हो,तुम
आ, दिल की आग बुझाने को
मुकेश इलाहाबादी -----------
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