कॉलोनी के कुछ लोग
झांझ
मजीरा, ढोलक
तालियाँ बजाते
सूरज निकलने के पहले
कॉलोनी के कुछ लोग निकल पड़ते हैं,
प्रभात फेरी के लिए
जाने किस शुभ - प्रभात की आगवानी के लिए
एक दो खाये अघाये अधेड़
डायबिटीज़ और बीमारियों से घिरे कुछ बुजुर्ग
कुछ बुढ़ाती या बूढ़ी हो चुकी महिलाऐं
एक दो बेरोज़गार युवक और चंद धार्मिक गृहिणियाँ
अल्ल सुबह घर के तमाम सदस्यों को सोते छोड़
धीरे से बंद करते हैं किवाड़ और
एक - एक कर इकट्ठे होते हैं कॉलोनी के मंदिर पे
या पार्क के किसी कोने में
और निकल पड़ते हैं - प्रभात फेरी पे
जाने किस शुभ प्रभात की अगवानी के लिए
सुबह की आगवानी के लिए निकले इन भक्तों की अगवानी करता है
डंडा फटकारता हुआ ,
रात भर का जगा चौकीदार
गर्दन को मोड़ के पेट पे थूथन रखे, लेटे ,कान और पूछ हिलाता स्वान
स्वागत करता है इन प्रभात फेरी करने वालों का
और स्वागत करती है सुबह की मंद - मंद बहती समीर
और उनका करता है स्वागत हलवाई की भट्टी गर्म करता बाल मज़दूर
कभी रिरियाते
कभी सुर में तो कभी बेसुरे होकर आगे पीछे हो कर
चल देती है चंद लोगों की टोली प्रभात फेरी के लिए
मन ही मन ये सोचते हुए कि वे एक पुण्य का काम कर रहे हैं
प्रभात फेरी कर रहे हैं -
और जो नहीं शामिल हैं प्रभात फेरी में वे पापी और कामी हैं
सुबह की पाली में जाने वाले
जल्दी जल्दी भागते हुए लोग एक उचटती नज़र डाल चल देते हैं
अपने गंतव्य
कुछ अपनी घरों से झांक देख लेते हैं कुतूहल वश
इनके आगे बढ़ते ही फाटक से दरवाज़ा बंद कर घुस जाते हैं अपने दड़बे में
वहीं कुछ लोग कुनमुनाते हुए बिस्तर में करवट बदल लेट जाते हैं
मन ही मन प्रभात फेरी वालों को इतनी सुबह डिस्टर्ब करने के लिए
तो कुछ लोगों के लिए प्रभात फेरी करती हैं अलार्म का काम
इनकी आवाज़ सुन उठ जाते हैं एक नई दिन चर्या के लिए
कॉलोनी का चककर लगा भक्ति भाव और कुछ विशिष्टता का भाव लिए
लोग फिर निकल पड़ते हैं - दूध लेने या फिर अपने घरों को
बिना यह देखे कि शुभ प्रभात हुआ या नहीं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------
क्रमशः
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