न कोई शोर न कोई शराबा हुआ
क़त्ल जब मेरे एहसासों का हुआ
हम ही सबको अपना मानते रहे
कोई आज तक न हमारा हुआ
ये पहली बार नहीं जब दिल टूटा
कई बार मेरे साथ ये हादसा हुआ
मिलने आ जाओ कभी सहरा में
दिख जाऊँगा रेत् सा बिखरा हुआ
कोई तो बता दे कँहा मेरी मंज़िल
मै हूँ इक मुसाफिर भटका हुआ
मुकेश इलाहाबादी ---------------
क़त्ल जब मेरे एहसासों का हुआ
हम ही सबको अपना मानते रहे
कोई आज तक न हमारा हुआ
ये पहली बार नहीं जब दिल टूटा
कई बार मेरे साथ ये हादसा हुआ
मिलने आ जाओ कभी सहरा में
दिख जाऊँगा रेत् सा बिखरा हुआ
कोई तो बता दे कँहा मेरी मंज़िल
मै हूँ इक मुसाफिर भटका हुआ
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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