Pages

Monday, 15 January 2018

अभी परों में जान बाकी है

अभी परों में जान बाकी है
हौसलों की उडान बाकी है

कुछ और दर्द दे सकते हो
होठों पे मुस्कान बाकी है

तुम तो अभी से रोने लगे
असली दास्तान बाकी है 

ज़िंदगी की पाठशाला में 
कई  इम्तिहान बाकी  हैं

स्याह खामोशी अभी भी
हमारे दरम्यान बाकी है

मुकेश इलाहाबादी ------

No comments:

Post a Comment