अँधेरे के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा दिया है
छोटा ही सही एक चराग़ जला दिया है
कुछ सिरफिरों ने गुलशन उजाड़ दिया
हमने फिर गुले मुहब्बत लगा दिया है
हमारी तरफ इक पत्थर उछाल उसने
बदले में इक गुलदस्ता भिजा दिया है
कलन्दरी रास आ गयी जिस दिन से
दौलते जहान की हमने लुटा दिया है
यादों के सफे पे उसका नाम लिखा था
मुकेश हमने वो नाम भी मिटा दिया है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
छोटा ही सही एक चराग़ जला दिया है
कुछ सिरफिरों ने गुलशन उजाड़ दिया
हमने फिर गुले मुहब्बत लगा दिया है
हमारी तरफ इक पत्थर उछाल उसने
बदले में इक गुलदस्ता भिजा दिया है
कलन्दरी रास आ गयी जिस दिन से
दौलते जहान की हमने लुटा दिया है
यादों के सफे पे उसका नाम लिखा था
मुकेश हमने वो नाम भी मिटा दिया है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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