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Thursday, 16 October 2014

कि,कोई बात समझता ही नहीं

कि,कोई बात समझता ही नहीं
दिल है कि कहीं लगता ही नहीं

घर तो भर लिया खिलौनों से
दिल  है  कि बहलता  ही नहीं

चाँद सी सूरत देख कर भी अब
अब मेरा दिल मचलता ही नहीं

तेरी जुल्फों के सिवा, कमबख्त
दिल मेरा कही उलझता ही नहीं

बहुत बार तो समझाता है मुकेश 
तू उसकी बात समझता ही नहीं ?


मुकेश इलाहाबादी -----------

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